Book Title: Jambudwip aur Adhunik Bhaugolik Manyatao ka Tulnatmaka Vivechan Author(s): Harindrabhushan Jain Publisher: Z_Parshvanath_Vidyapith_Swarna_Jayanti_Granth_012051.pdf View full book textPage 4
________________ जम्बूद्वीप और आधुनिक भौगोलिक मान्यताओं का तुलनात्मक विवेचन २२९ विश्व का भौगोलिक वर्णन उपलब्ध होता है। लोक के तीन विभाग किए गए हैं-अधोलोक, मध्यलोक तथा ऊर्ध्वलोक । मेरु पर्वत के ऊपर ऊर्ध्वलोक, नीचे अधोलोक एवं मेरु की जड़ से चोटी पर्यन्त मध्यलोक है। मध्यलोक के मध्य में जम्बूद्वीप है, जो लवण समुद्र से घिरा है। समुद्र के चारों ओर धातकीखण्ड नामक महाद्वीप है। धातकीखण्ड द्वीप को कालोदधि समुद्र वेष्टित किए हुए हैं । अनन्तर पुष्करवरद्वीप, पुष्करवरसमुद्र आदि असंख्यात द्वीप समुद्र हैं। पुष्करवरद्वीप के मध्य में मानुषोत्तर पर्वत है जिससे इस द्वीप के दो भाग हो गए हैं । अतः जम्बूद्वीप धातकीखण्ड और पुष्करार्द्ध द्वीप, इन्हें मनुष्य क्षेत्र कहा गया है। जम्बूद्वीप का आकार स्थाली के समान गोल है। इसका विस्तार एक लाख योजन है। इसके बीच में एक लाख चालीस योजन ऊँचा मेरु पर्वत है। मनुष्य क्षेत्र के पश्चात् छह द्वीपसमुद्रों के नाम इस प्रकार हैं - वारुणीवर द्वीप-वारुणीवर समुद्र, क्षीरवर द्वीप, क्षीरवर समुद्र, घृतवर द्वीप-घृतवर समुद्र, इक्षुवर द्वीप-इक्षुवर समुद्र, नन्दीश्वर द्वीप-नन्दीश्वर समुद्र, अरुणवर द्वीप-अरुणवर समुद्र, इस प्रकार स्वयंभू रमण समुद्र पर्यन्त असंख्यात द्वीप समुद्र हैं। जम्बूद्वीप के अन्तर्गत सात क्षेत्र, छह कुलाचल और चौदह नदियाँ हैं। हिमवान्, महाहिमवान्, निषध, नील, रुक्मी और शिखरी ये छह कुलाचल हैं। ये पूर्व से पश्चिम तक लम्बे हैं। ये जिन सात क्षेत्रों को विभाजित करते हैं उनके नाम हैं-भरत, हैमवत, हरि, विदेह, रम्यक, हैरण्यवत और ऐरावत। इन सातों क्षेत्रों में बहने वाली चौदह नदियों के क्रमशः सात युगल हैं, जो इस प्रकार हैं :- गङ्गा-सिन्धु, रोहित्-रोहितास्या, हरित्-हरिकान्ता, सीता-सीतोदा, नारी-नरकान्ता, सुवर्णकूला-रूप्यकूला तथा रक्ता-रक्तोदा। इन नदी युगलों में से प्रत्येक युगल की पहली नदी पूर्व समुद्र को जाती है और दूसरी नदी पश्चिम समुद्र को। भरत क्षेत्र का विस्तार पाँच सौ छब्बीस सही छह बटे उन्नीस (५२६.६) योजन है। विदेह पर्यन्त पर्वत और क्षेत्रों का विस्तार भरत-क्षेत्र के विस्तार से द्विगुणित है। उत्तर के क्षेत्र और पर्वतों का विस्तार दक्षिण के क्षेत्र और पर्वतों के समान है। जम्बूद्वीप के अन्तर्गत देव कुरु और उत्तर कुरु नामक दो भोग भूमियाँ हैं । उत्तर कुरु की स्थिति सीतोदा नदी के तट पर है। यहाँ के निवासियों की इच्छाओं की पूर्ति कल्पवृक्षों से होती है। इनके अतिरिक्त हैमवत, हरि, रम्यक तथा हैरण्यवत क्षेत्र भी भोगभूमियाँ हैं। शेष भरत, ऐरावत और विदेह (देवकरु और उत्तर कुरु को छोड़कर) कर्म भूमियाँ हैं। भरत क्षेत्र हिमवान् कुलाचल के दक्षिण में पूर्व-पश्चिमी समुद्रों के बीच स्थित है। इस क्षेत्र में सुकोशल, अवन्ती, पुण्ड्र, अश्मक, कुरु, काशी, कलिङ्ग, अङ्ग, बङ्ग, काश्मीर, वत्स, पाञ्चाल, मालव, कच्छ, मगध विदर्भ, महाराष्ट्र, सुराष्ट्र, कोंकण आन्ध्र, कर्नाटक, कोशल, चोल. केरल, शूरसेन, विदेह, गान्धार, काम्बोज, बाल्हीक, तुरुष्का शक, केकय आदि देशों की रचना मानी गयी है।' १. डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री-आदि पुराण में प्रतिपादित भारत', गणेशप्रसाद वर्णी ग्रन्थमाला वाराणसी, १९६८, पृ० ३६-४४ 'आदिपुराण में प्रतिपादित भूगोल' प्रथम परिच्छेद तथा तत्त्वार्थसूत्र की 'सर्वार्थसिद्धि' टीका, सम्पादक पं० फूलचन्द्र शास्त्री, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी १९६५ तृतीय अध्याय पृ० २११-२२२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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