Book Title: Jambudwip aur Adhunik Bhaugolik Manyatao ka Tulnatmaka Vivechan Author(s): Harindrabhushan Jain Publisher: Z_Parshvanath_Vidyapith_Swarna_Jayanti_Granth_012051.pdf View full book textPage 8
________________ जम्बूद्वीप और आधुनिक भौगोलिक मान्यताओं का तुलनात्मक विवेचन २३३ ३–एवरेस्ट ( Everest ) पर्वत शृंखलाओं से घिरा क्षेत्र, ४-हिमालयन आक्स (Himalayan Arcs) तथा कुन-लुन (Kun-lun) पर्वत से घिरा हुआ तिब्बत का पठार, तथा ५-हिन्दूकुश (Hindu-Kush), कराकोरम, टीन-शान ( Tienshan) तथा अलाह पार पर्वत शृंखला (Trans-Alai system) की बर्फ से ढकी चोटियों से घिरा पामीर का उन्नत पठार । इन पाँचों उन्नत प्रदेशों में से पामीर के पठार' से मेरु की तुलना करना और भी अधिक सही और युक्तियुक्त प्रतीत होता है ।। पामीर और मेरु में नाम का भी सादृश्य है पा--मीर=मेरु । यदि पामीर के पठार से मेरु की तुलना सही है तो पुराणों में प्रतिपादित जम्बूद्वीप के पार्श्ववर्ती प्रधान पर्वतों की भी पहचान की जा सकती है। पुराणों के अनुसार मेरु के उत्तर में तीन पर्वत हैं - नील, श्वेत [जैन परम्परा के अनुसार 'रुक्मी' ] और शृङ्गवान् [ जै० प० शिखरी], ये तीनों पर्वत, रम्यक, हिरण्मय [ जै० प० हैरण्यवत् ] तथा कुरु [ जै० प०--ऐरावत् ] क्षेत्रों के सीमान्त पर्वत हैं। इसी प्रकार मेरु के दक्षिण में भी तीन पर्वत हैं-निषध, हेमकूट [जै० प०-महाहिमवान् ] तथा हिमवान् । ये तीनों पर्वत, हिमवर्ष [ जै० प० हरि ], किम्पुरुष [ जै० प०-हैमवत् ] और भारतवर्ष [ जै० प०-भरत ] क्षेत्रों के सीमान्त पर्वत हैं। ये छहों पर्वत पूर्व और पश्चिम में लवण समुद्र तक फैले हैं। इन सभी पर्वतों की तुलना वर्तमान भूगोल से इस प्रकार की जा सकती है१-शृङ्गवान् [शिखरी] की करा ताउ-किरगीत-केतमान पर्वतशृङ्खला [Kara Tau Krighiz-Ketman Chain] से, २--- श्वेत [रुक्मी] की नूरा ताउ-तुर्किस्तान-अतबासी पर्वत शृङ्खला [Nura Tau ___Turkistan-Atbasi Chain] से, ३-नील की जरफशान-ट्रान्स-अल्लाह-टीन शान पर्वत शृङ्खला से, ४-निषध की हिन्दूकुश तथा कुनलुन पर्वत शृङ्खला से ५-हेमकूट [महाहिमवान्] की लद्दाख-कैलाश-ट्रान्सहिमालयन पर्वत शृङ्खला से तथा ६–हिमवान् की हिमालय पर्वत शृंखला [Great Himalayan range] से ।' जम्ब द्वीप जैसा कि हम पहले कह चुके हैं, पुराणों में मेरु पामीर्स] नील के उत्तर में क्रमशः तीन पर्वत मालायें हैं जो पूर्व-पश्चिम लम्बी हैं-नील, जो कि मेरु के सबसे निकट और सबसे लम्बी पर्वतमाला है, श्वेत. जो कि नील से कुछ छोटी और उससे उत्तर की ओर आगे है, तथा अन्तिम शृङ्गवान्, जो कि सबसे छोटी तथा श्वेत से उत्तर की ओर आगे है। १. डा० एस० एम० अली Geo. of Puranas पृ० ५० से ५३ तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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