Book Title: Jambudwip Part 04
Author(s): Vardhaman Jain Pedhi
Publisher: Vardhaman Jain Pedhi

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Page 141
________________ हानि करते हैं, इन्हें दंड देना चाहिये । किये इसके लिए हम सभी उनके चिरऋणी यह सुनकर देवराज इन्द्र को बड़ा क्रोध और आभारी होंगे। आया, वे अपना वा लेकर पर्वतों के पंख दूसरे देशो में यदि ऐसा कोई अन्वेषण काटने के लिये चले। करता, ऐसा गम्भीर अध्ययन युक्त निबन्ध हम जब बद्री केदार की यात्रा को जाते लिखता तो उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा होती हैं, तो पंडा हमे बताया करते हैं आप ओर विश्व विद्यालय उन्हें सम्मानित पदवी सवालाख पर्वतों की प्रदक्षिणा कर रहे हैं। से विभूषित करते, किन्तु एक हम हैं जो हिमाचल की सवालाख श्रेणियाँ होंगी । ये चिरकाल की दासता के कारण विदेशियों के सब हिमालय की प्रजा है, हिमालय इनके मुंह ताकते रहते है और उनके जूठे अनुराजा है, इन्द्र ने सब पर्वतों के पंख काट मानों को 'बाबावाक्य प्रमाणम्' मानकर हिये, तभी से पर्वत स्थिर अचल हो गये । उनका अनुसन्धान करण करते हैं। किन्तु हिमालय का एक लड़का था मैनाक करने वाले तो अपना काम करते ही रहते वह पंख कटने के भय से भाग कर समुद्र हैं, दसरे लोग चाहे उनके कार्यो का आदर में छिप गया, इसलिये वह पंख कटने से करे या न करें। वच गया । वह कभी कभी समुद्र से बाहर एक संस्कृत के विख्यात कविने लिखा है- . आ जातो है, जब हनुमान जी लंका गये उत्पद्यते कोऽपि समान धर्माः थे, तब समुद्र से ऊंचा उठकर उसने हनुमान जी को विश्राम करने को कहा था । कालोपि निरवधिः विपुला च पृथिवी ॥ - इस पौराणिक आलंकारिक कथा का __आज कोई हमारी बात नहीं सुनता है, यथार्थ अर्थ कुछ भी हो, किन्तु यह ध्रुव तो न सुने । कालान्तर में कोई हमारी बात सत्य है, कि हिमालय की कुछ श्रेणियां समुद्र को समझने वाला उत्पन्न होकर इसका प्रचार प्रसार सकता है क्योंकि यह काल निरवधि के नीचे विद्यमान हैं अर्वाचीन अन्वेषकों ने है, ईसकी कोई सीमा नही, और यह पृथिवी उन्हें खोजकर निकाला है । इसका विशेष विवरण आप इस पुस्तक में पढेंगे । और भी बहुत बडी है। इह छोर के लोग हमारी विस्तार से वर्णन भगवान् ने चाहा तो मेंरी बात पर ध्यान न देगे तो दूसरे किसी छोर भागवती कथा के अगले खण्डों में मिलेगा। कलाग समझगे । इसी आशा से ये निबन्ध मैं तो इन विषयों पर महाभारत और लिखे गये है। प्राणों के आधार पर लिखने ही वाला था, वास्तव में तो यह दृश्यमान् जगत्किन्तु मुझसे पूर्व ही हमारे प्रिय प्र० शुक- समस्त विश्व ब्रह्माण्ड उन सच्चिदानन्दघन देव शरणजीने जो हमारा पथ प्रदर्शन किया। परमात्मा का स्थूल रूप है। इसे विराट संक्षेप में प्राचीन भारत वर्ष और हिमा- भगवान की देह मामकर ही इसकी उपासना लय के सम्बन्ध में जो अपने विचार व्यक्त करनी चाहिये। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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