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जम्बद्वीप : जैन धार्मिक दृष्टि से
0 डा० दामोदर शास्त्री
प्राचीन भारतीय संस्कृति की उभय-धारामों- जम्बुद्वीप। इन दोनों में भी जम्बूद्वीप की अपनी हिन्दू व श्रमण में भारतभूमि तथा जम्बूद्वीप के विशेषता है। जम्बूद्वीप में अनेक पवित्र जिन प्रति श्रद्धा का भाव रहा है। प्रत्येक हिन्दू अपने चैत्यालय हैं। जम्बूद्वीप के अंगभूत क्षेत्र विदेह में मांगलिक कार्यों के प्रारम्भ में संकल्प-मन्त्र पढ़ता आज भी तीर्थंकर विहार कर रहे हैं। जम्बूद्वीप के है, 'उसमें वह जम्बूद्वीप तथा भरतक्षेत्र, पार्यखण्ड भरत-ऐरावत के प्रार्यखण्ड को यह गौरव प्राप्त है आदि में अपने अस्तित्व को गरिमामयं शब्दों में कि यहां तीर्थंकर आदि महापुरुषों की पवित्र जन्मस्वीकारता है। जैन परम्परा में भी जम्बूद्वीप, भूमि, तपोभूमि व निर्वाण-भूमि विद्यमान हैं। यहीं आदि की पूज्यता को स्वीकारा गया है।
मनुष्य भव में जन्म लेने वाले प्राणी तपश्चर्या द्वारा यहां तक कि देवता भी भारत-भूमि में जन्म कर्म-मुक्त हो सकते हैं। लेने वाले हम भारतीयों के भाग्य को चाह भरी
मोक्ष की प्राप्ति के लिए सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान दष्टि से देखते हैं। यह भारत-भूमि जम्बूद्वीप का तथा सम्यक चारित्र–इन तीन रत्नों की समन्वित एक भाग है, अतः जम्बूद्वीप की पूज्यता भी स्वतः
साधना आवश्यक मानी गई है। इनमें दर्शनविशुद्धि सिद्ध हो जाती है।
की दृष्टि से जम्बूद्वीप के स्वरूपादि का ज्ञान जैन, बौद्ध व वैदिक-ये तीनों परम्पराए प्रावश्यक साधन हैं-ऐसा जैन आचार्यों का मत जम्बूद्वीप के अस्तित्व को स्वीकार करती हैं और है। जम्बद्रीप नाम की सार्थकता का प्राधार इसके मध्य प्राचार्य विद्यानन्दि ( जैन न्याय के अप्रतिम में स्थित 'जम्बू' नामक अकृत्रिम 'जम्बूवृक्ष' को विद्वान् ) ने अपने तत्वार्थश्लोकवार्तिक में यह प्रश्न मानती हैं। इन परम्पराओं में इस पर भी सहमति
उठाया है कि मोक्ष-प्राप्ति की दृष्टि से तो जीव है कि जम्बूद्वीप के मध्य सुमेरु पर्वत स्थित है,
या प्रात्मा के स्वरूप का ज्ञान पर्याप्त है, जम्बूजम्बूद्वीप को चारों ओर से समुद्र ने वेष्ठित कर
द्वीपादि तथा त्रिलोक के ज्ञान का क्या प्रयोजन रखा है, जम्बूद्वीप-स्थित कुलपर्वतों से ही नदियों है? इसका उत्तर देते हुए कहते हैं कि चूंकि का उद्गम है, प्रादि मादि ।
जम्बूद्वीपादि के स्वरूप को जान लेने से मनुष्यादि जैन धर्म में दो द्वीप अत्यन्त श्रद्धा की दृष्टि के आधार-स्थल का निश्चय होता है। क्षेत्रादि से देखे जाते हैं-(१) नन्दीश्वर द्वीप, और (२) के निरूपण के बिना जीवतत्व का श्रद्धान व सम्यक
१. जम्बूद्वीपे भरतक्षेत्रे आर्यखण्डे ......."प्रदेशे ...... नगरे। २. अहो अमीषां किमकारि शोभनं प्रसन्न एषां स्विदुत स्वयं हरिः। यैर्जन्म लब्धं नृषु भारताजिरे, मुकुन्दसेवीपयिकं स्पृहा हि नः ।।
(भागवत-5119121)
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