Book Title: Jainendra Kahani 10
Author(s): Purvodaya Prakashan
Publisher: Purvodaya Prakashan

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Page 11
________________ महामहिम 1 उपा परिचारिका नही है । कुछ सैक्रेटरी ही समझिए । वही महामहिम के सबेरे के नाश्ते पानी की व्यवस्था करती है । कमरे मे आई और देखकर वह दंग रह गई कि महामहिम बैठे है । दाहिनी बाह कोहनी से मेज पर टिकी है और चेहरा हाथ मे थमा है । वह ग्राई थी कि मेज़ साफ करेगी । चीजें सही जगह चुनकर रखेगी। और तैयारी हो चुकने पर महामहिम से कहेगी । पर अब वह ठिठकी रह गई । दरवाजे पर ही सोचती रह गई कि वह आगे बढे या वापिस जाय । ऐसा कभी नही हुआ है । महामहिम हमेशा उद्यत प्रसन्न दीखे है । यह तो कल्पना से बाहर है कि वह अपने से आकर इस कमरे मे बैठें और वह भी इस तरह कि वेभान हो और सोच मे हो । उसे खडे खडे अनुचित मालूम होने लगा और वह दबे कदम वापस जाने को थी कि महामहिम ने कहा, "अरे, " उपा उषा स्तब्ध रह गई । उसे पहचाना जाएगा, नाम लेकर सम्बोधन से पुकारा जाएगा, यह उसके लिए बहुत अधिक था । मानो वह जमकर पत्थर वन आई । "मेज साफ करोगी ?" ast कठिनाई से उसके मुह से निकला, "जी !” "तो, करो साफ ।" कहकर महामहिम कुर्सी छोडकर खड़े हुए और पीछे सरक कर दीवार से सट आए। उपा बुत बनी अपनी जगह खडी रह गई ।

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