Book Title: Jainendra Kahani 07
Author(s): Purvodaya Prakashan
Publisher: Purvodaya Prakashan

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Page 200
________________ चालीस रुपये १९५ और मनीआर्डर लिखता हूँ, डाकखाने में दे श्राना, ऊपर से जो पैसे लगें लगा देना और दो दिन यहाँ मत आना । क्योंकि पूरे दो दिन में सोऊँगा ।" . वह कहना चाहता था, पर कह नहीं सका, " "उसके बाद... "मैं भी हराम का नहीं, काम का खाऊँगा ।" चालीस रुपये आये और गये। फिर आये और फिर गये । वह कैसे ? उसका वृत्तान्त यहाँ समाप्त होता है ।

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