Book Title: Jainendra Kahani 07
Author(s): Purvodaya Prakashan
Publisher: Purvodaya Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 210
________________ प्यार का तर्क सम्बन्ध स्थिर करना चाहा, वहीं स्वीकार कर लिया। तब से तो वह लड़का ही बदल गया है । सच बतानो, शुक्ल, क्या बात हुई थी ?" हँसकर मैंने मित्र को टाला कि कुछ नहीं प्यार का और जवानी का तर्क और होता है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217