Book Title: Jainagama Digdarshan Author(s): Nagrajmuni, Mahendramuni Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur View full book textPage 4
________________ प्रकाशकीय राजस्थान प्राकृत भारती संस्थान के छठे पूष्प के रूप में "जैनागम दिग्दर्शन" पुस्तक पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करते हुए हार्दिक प्रसन्नता है। ___जैन दर्शन और साहित्य के विशिष्ट विद्वान् डा. मुनिराज श्री नगराज जी महाराज से जनसाधारण को आगम-साहित्य की संक्षिप्त ज्ञान उपलब्ध कराने हेतु जैनागम दिग्दर्शन" पुस्तक लिखने के लिए प्राकृत भारती की तरफ से निवेदन किया गया था जिसे उन्होंने समयाभाव के उपरांत भी सहर्ष स्वीकार किया। प्रस्तुत पुस्तक उन्हीं के प्रयास का फल है जिसके लिए संस्थान उनके प्रति बहुत ही आभारी है। इस पुस्तक का सम्पादन शतावधानी उपाध्याय श्री महेन्द्र मनि जी ने किया था, परन्तु पुस्तक-प्रकाशन के पूर्व ही उनका स्वर्गवास हो गया, अतः उनके प्रति संस्थान की ओर से हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित है। ___ जैन दर्शन के लब्धप्रतिष्ठ विद्वान् श्री दलसुखभाई मालवणिया, भूतपूर्व निदेशक, लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्या मंदिर, अहमदाबाद ने संस्थान के निवेदन पर इस पुस्तक पर प्रास्ताविक लिखना स्वीकार किया, इसके लिए संस्थान उनके प्रति भी आभारी है। पुस्तक के प्रकाशन में महोपाध्याय श्री विनयसागर संयुक्त सचिव ने जो अथक प्रयास किया तथा श्री पारस भंसाली जिन्होंने पुस्तक के मुख पृष्ठ के कला पक्ष को संवा के प्रति भी संस्थान कृतज्ञ है । देवेन्द्रराज मेहता दिनांक १५-५-८० सचिव, राजस्थान प्राकृत भारती संस्थान, जयपुर . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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