Book Title: Jainagama Digdarshan
Author(s): Nagrajmuni, Mahendramuni
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ संक्षिप्त है जबकि अंग बाह्यों के परिचय में अधिक सामग्री दी गई है, इससे पुस्तक में परिचय की एक रूपता नहीं रही । लेखक का ध्यान इन बातों की ओर दिलाने से ग्रन्थ का मूल्य कम नहीं होता केवल दूसरे संस्करण में इस पर लेखक विचार कर सके इसके लिए ही यहाँ उनका ध्यान इस ओर आकृष्ट किया गया है । यथार्थ बात तो यह है कि लेखक ने इस पुस्तक को लिखकर सामान्य जिज्ञासु को प्रागमों के विषय में अच्छा परिचय दिया है और उसके लिए लेखक का वाचकवर्ग प्रभारी रहेगा ही । राजस्थान प्राकृत भारती संस्थान ने अपने अस्तित्व के थोड़े से ही समय में विद्या- वितरण के क्षेत्र में अपना स्थान उचित रूप में जमाया है और उसे उत्तरोत्तर सफलता मिले यह शुभेच्छा है । राजस्थान प्राकृत भारती संस्थान की प्रगति हो रही है उसमें उसके कर्मठ उत्साही सचिव श्री देवेन्द्रराज जी मेहता और उनके सहकारी महोपाध्याय पं० श्री विनयसागर जी का उत्साह मुख्य कारण है, विद्यारसिक विद्वद्वर्ग उनके प्रभारी रहेंगे । अहमदाबाद दिनांक 24-4-80 Jain Education International ( vili ) दलसुखभाई मालवणिया For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 212