Book Title: Jain Tirth Yatra Darshak
Author(s): Gebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 10
________________ ( ६ ) ३- हरिण व खरगोश हजारों होनेपर भी सिंह एक ही भला है। इसी तरहसे सच्चे घर्मके अनुयायी थोड़े भी बहुत हैं। प्राचीनता एक प्रामाणिक पदार्थ है । जिस मतकी जितनी प्राचीनता होगी, वह मत उतना ही श्रेष्ठ होगा । वर्तमान में उस प्राचीनताके माननेवाले कम मनुष्य हों, लेकिन वह प्राचीनता उनका बहुपना, अनादि निधनपना प्रगट करती है । माजकल ऊपरसे अच्छे दिखनेवाले बहुत मत हैं । बड़े‍ विद्वान् प्राचीनकालके मतको उत्तम एवं गौरवकी दृष्टिसे देखते हैं । और मुक्तकंठसे प्रशंसा भी करने लग जाते हैं। क्योंकि सचाईका महत्व उनमें भरा हुआ है । आज दिगम्बर जैन मतानुयायी कम हैं। मगर उनके प्राचीन स्थान और आदर्श तत्व उनकी सचाई ब प्रमाणताको बता रहे हैं, कोई मूर्ख लोग अज्ञानतासे भले ही निंदा करें। जैन मतके किसी भी तत्वपर आरूढ रहने से संसारके प्राणियोंका प्रत्यक्ष कल्याण होता है । यदि कोई प्राणी जैन धर्मको सम्पूर्ण रूपसे ग्रहण करें, तो क्या उसका कल्याण नहीं होगा ? अवश्य ही होगा। जैन मत अहिंसातत्वप्रधान है। उसको धारण करनेवालोंका बल संसार में कितना बढ़ गया है यह बात जगतप्रसिद्ध है। ज्यादः प्रशंसाकी जरूरत नहीं है। जैन धर्मका रहस्य शास्त्रों में वर्णित है । विद्वान् लोग उसको देख सकते हैं। और परीक्षा भी कर सकते हैं कि कौनसा धर्म अच्छा है । अनेक प्राचीन तीर्थोको देखने से जैनघमंकी ढढ़ता होसकती है।

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