Book Title: Jain Tirth Yatra Darshak
Author(s): Gebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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(१०) शुभफूलरास सुवासवासित, खेद सब मनके हरों। दुखधाम काम बिनाश मेरो, जोरकर विनती करौं ।स०॥ ॐ हीं चतुर्विंशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्रेभ्योः पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा नेवज अनेकप्रकार जोग, मनोग धरि भय परिहरौं । दुखधाम काम विनाश मेरो, जोरकर विनती करौं ।स०॥ ॐ हीं चतुर्विशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्रेभ्यो नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। दीपक प्रकाश उजास उज्जल, तिमिरसेती नहिं डरौं । संशयविमोहविभरम तमहर, जोरकर विनती करौं ।स०॥ ॐ हीं चतुर्विशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्रेभ्यो दीपं निर्वामीति स्वाहा। शुभ धूप परम अनृप पावन. भाव पावन आचरौं । सब करमपुंज जलाय दीजे, जोरकर विनती करौं ॥स०॥ ॐ ही चतुर्विंशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्रेभ्यो धूपं निर्वपामीति स्वाहा। बहु फल मंगाय चढाय उत्तम, चारगतिसों निरवरौं । निहचे मुकतिफल देहु मौकौं, जोरकर विनती करौं ।।स०॥ ॐदी चतुर्विंशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्रेभ्योः फळं निर्वपामीति स्वाहा। जल गंध अच्छत फूल चरु फल, दीप धूपायन धरौं । 'घानत' करो निरभय जगतम. जोरकर विनती करौं।स०॥ ॐ चतुर्विंशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्रेभ्यो अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ।
जयमाला।
सोरठा । श्री चौबीस जिनेश, गिरि कैलासादिक नमों । वीरथमहामदेव, महापुरुष निरवाणते ॥१॥

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