Book Title: Jain Swadhyaya Mala Author(s): Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh Sailana MP Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh View full book textPage 9
________________ पृष्ट पंक्ति ११६ मुत्तो १२१ जीविय उपज महिसी देवो वयण १ सुकुमालो हुसी २१ अशुद्ध मत्तो जीवय उप्पजई माहिसी देवे वायण सकुमालो हु सी समत्तण दुक्खभायणिय चउरते सिद्धि अणुसट्टि अ णगारियं गयमा झोसोयरो रेवययम्मि पासिए तद्दन्वणिसरो परिभायम्मि दुहवो-वि १६ समणत्तणं दुक्खभयाणिय चाउरते सिद्धि अणुसिद्धि मणगारिय गोयमो झसोयरो रेवययम्मि प्पसाहिए तद्दब्वऽणिस्सरो परिभोयम्मि दुहमो वि वुत्ता अलोलुय २१ २० १६५ १६६ १६८ ता काला १६६ .. सुक्ता १७१ प्राकृत शीर भासली अ - चउथीइ खलकिज्ज 'नायव्वा चउत्थीइ खलुकिज १७८ 403 ( क्रमाक लाकज्ज on • कम्यकवी (७)Page Navigation
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