Book Title: Jain Swadhyaya Mala
Author(s): Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh Sailana MP
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ पृष्ट १८० १८७ १८६ १६२ १६६ २०० २०४ २२८ २३३ २३८ २३६ २४७ २४६ २५३ २५३ २६१ २६४ २६४ २६८ २६६ २७१ २७१ २७२ २७८ २८४ २८६ " पक्ति १७ ६ १६ २० १३ १३ १६ १६ w x १४ ६ १४ २२ २३ ६ १४ २ १० १३ १६ १ ४ १२ १८ w १८ ६ २० अशुद्ध आहरपच्च पच्चखाणेण भते । सागरोवउत्ते इगिय सेण समोयओ मुहत्त जलयरायण पढम्मि चेवरुवी चडुलिय अगलसेढी मित्ते सजयासजय गव्भवक्कति मणुस्साण सद्दीति खओसमेण निरिक्खय अकिरियाईण अगट्टायाए अज्जयणसए नायधम्मक हासु अगुओगदारा मासाण अब्भणुणाए आयामणभूमिए सोलम शुद्ध आहारपच्च पच्चवखाणेण ण भते । सागारोव उत्ते इगिय दोसेण समो य जो मुहुत्त जलयराण पदमम्मि चेवारुवी चडुलिय अगुलसेढी मित्ते सजयासजय गव्भवक्कतियमणुस्साण सद्दोत्ति खमवसमेण निरिक्खिय अकिरियावाईण अगट्टयाए अज्झयणसए नायाधम्म कहासु जणुओगदारा आसाण अन्भणुष्णाए आयावणभूमिए सोलसम (5)

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 408