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(७१) कहोगे हमको नहीं किया पहिला। मुरिदों को अकल फिर आवे ॥ गुरुजी ॥६॥ अगर तुमारी है होशियारी। भक्ती करो गुणवत्तो की भारी ॥ हीरालाल कहे ये अक्कल हमारी ।
आलीजासे आलीजा पद पावे ॥ गुरुजी॥७॥ ॥ पंद-सच्चामित्र ।। गजल-कवाली ॥ मित्रका भरोसा भारी । वोही जो काम आते हैं। मुनासिबसमजके दिलको।जानसेजानलगाते हैं।मि? होवे कोइ बचनका सूरा । उनोका भागहै पूरा ॥ हजारों कोस भी जावे । वहां भी काम आते हैं।मिर मित्र वो दुःख मिटावे । सज्जन पन करके बतलावे॥ कृष्णधातकी खन्ड गये। द्रोपती लेकर आते हैं।मि३ भाइ लक्ष्मण के कारण । भरत उर्स क्त ।