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(१०३) रस ममताको पीनोनी ॥ दियो ।। ४ ।। यों किया लोच सब सोचको अलग हटाया।महाराज। भरतेश्वर मन विचारीजी॥ मत मानोहमारी कहन। भोगवो ऋद्धि तुमारीजी। नहीं माने वाइबल बात के संयम लीनो।।महाराज।। दिलमें आयो अभिमानोजी ।। नहीं पड़े पांव लघुमात । वनमें रह्या घर ध्यानॉजी।। हीरालाल कहे अब करो मोक्षकी करणीमहाराज।। आप छो जानका भीनाजी ॥ दिया ॥ ५ ॥
॥ लावणी-बावली मुनीको ब्राह्मी सुन्दरी
सतियों का सोध ।। बाल वरोक्त ।। यों कहे ऋपभजिन ब्राह्मी सुन्दरी दोई ॥महागज॥ मुनिको जाइ समझावोजी॥ थालीनो संयम भार। मान तो पगे मिटावोजी ॥टेर।।
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