Book Title: Jain Subodh Ratnavali
Author(s): Hiralal Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad

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Page 209
________________ (१८९) ऊंच नीच भयो जैसो चपलाको चलको ॥ वाप मरि पुत्र भयो पुत्रको पुत्र थयो । उलट पुलट जैसो नाटकको खलको । हीरालाल कहे लीनो संजमसु शालिभद्र । तुरत त्यागन कियो नासिकासो मलको ॥ ४ ॥ एकतभावना एका एकीहै चेतन मेरो। कोइ नहीं तेरो देख ज्ञान चित धरणो॥ आवताहि एकाएकी जावत हे एकाएकी। आगम गमन सो तो करमाको करनो ॥ आपही संचित कर्म भोगत है आपो आपी। सुख दुःख निजकृत आपको उधरणो ॥ कहे हीरालाल नमिराज भये ऋषिराज । एकंत विराजीकाज संजमको सरणो. ॥५॥ जैसे निश वासकाज पंखि तरू रया राज। तेसो परिवार मिल्यो जविवहु भांत है ।

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