Book Title: Jain Subodh Ratnavali
Author(s): Hiralal Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad
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(१९२) अकाम सकाम दोइ निर्जराका भेद योही। त्रीयंच मनुष्य माहीं सह्या दुःख भारी है ॥ मन बिना सहे दुःख परवसे मरे भुख । तोहि मिल जाय सुख सुरपद धारीहै ॥ अनसण आदि द्वादस भेदे तप करे। ज्ञान सहित काजसरे जांकी रीति न्यारी है ॥ कहे हीरालाल तप करके निहाल लाल। एसी करतुत जाल अर्जुन मारी है ॥ १० ॥ लोक माहि एक जिन धर्म है जहाज जाण । तारण तिरण काज भवजीव दासत्ता॥ चिंतामणी कामधेनु कल्पवृक्ष मानु तेनु । वंछित सुखारो देनु राखे शुद्ध आसत्ता ॥ जिनवर दिनकर मिथ्यात तिमर हर। .
केवल ज्ञानधर धर्मका भासत्ता ॥ __ हीरालाल कहे धर्मरूची जिने धर्म रूच्यो। ।

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