Book Title: Jain Stotra Sangraha Part 02
Author(s): Yashovijay Jain Pathshala
Publisher: Yashovijay Jain Pathshala

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Page 5
________________ रस वहेछे; तेनुं वर्णन करवूते तेओनी कलमने अपमान पहोंचाडवा जेवू होवाथी, तेनी कीमत करवान वांचनाराओनेज सोंपीओ छीओ. आ ग्रन्थ माटे हस्तलिखित प्रतो मोकलवा माटे पन्यासजी श्रीगम्भीरविजयगणिजी, तथा मुनिराज श्रीहंसविजयजी तथा मुनिराज श्री कर्पूरविजयादिनो तेमज विशेषे करीने मुनिराज श्रीभक्तिविजयजीनो अमे अन्तःकरण पूर्वक आभार मानी छीओ. आ पाठशालाना उत्पादक मुनिराज श्रीधर्मविजयजी विरचित, शान्तमूर्तिमुनिवर्य श्रीवृद्धिचन्द्रजी महाराजर्नु स्तुतिरूप अष्टक, अन्यत्र दृष्टिगोचर थशे. जे पूज्यपाद् गुरु महाराजजीनी अनुपम ज्ञान तेमज कृपानी प्रासादी वडे, मुनिराज श्री धर्मविजयजी आजे आ पाठशालाने कहोके भविष्यमा अनेक, जैन प्रवीण संस्कृत स्कॉलरोने उत्पन्न करनार देवीने, हैयातीमा लावी शकया छे. ते गुरुमहाराजश्रीनुं यशोगान अर्पण करवा उपरान्त भव्य जीवोने दर्शनार्थ तेओनी एक पवित्र शान्त मूर्ति पण भेट करीओ छीओ.आशातना न करवा माटेवांचकोनुं खास ध्यान खेंची विरमी छीओ. ॥ शान्तिः ॥

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