Book Title: Jain Stotra Sangraha Part 02
Author(s): Yashovijay Jain Pathshala
Publisher: Yashovijay Jain Pathshala

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Page 11
________________ ॥ अहम् ॥ महामहोपाध्यायसाधुराजगणिकृता भोज्यादिनामगर्भिता स्वोपज्ञटीकासहिता जिनस्तुतिः । श्रीमहावीरमानम्य किञ्चिद् वृचिर्विधीयते । खोपज्ञचित्रकृतस्तोत्रे क्रीडामात्राय धीमताम् ॥१॥ तस्य चेदमादिपy आंबा ॥१॥ अत्र स्तुतौ सन्तोऽप्यनुवारा अर्थानुकूल्यान्न गण्यन्ते लकारस्थाने डकारा डकारस्थाने च लकारास्तथा बकारस्थाने वकारा वकारस्थाने च बकारा अर्थानुकूल्यादेव गण्यन्ते चित्रकृतश्लिष्टकाव्यत्वात् । उक्तं च ।। यमकश्लेषचित्रेषु बवयोर्डलयोन भित् । नानुस्खारविसर्गौ च चित्रभङ्गाय सम्मतौ ॥१॥ ॥ श्रीसर्वविदे नमः ॥ आम्बारायण सेलडीखडहडीकेलामती

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