Book Title: Jain Stotra Sangraha Part 02
Author(s): Yashovijay Jain Pathshala
Publisher: Yashovijay Jain Pathshala
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श्रीसाधुराजीयजिनस्तुतिः रांगभं चंचद्दाडिमद्राखखारिक रसात्त्वां साकुची खाजलाम् । लाडूषांडखजूरसारखडबूजांकूरदालिप्रभो नौमि श्रीजिनमुद्रसाकरमहं श्रीपानसत्फोफलम् ॥१॥ [आम्ब! अरायण! सेलडी खलहलीकेलामतिः राङ्गभं चञ्चदालिमद्र! अखखारिक! रसात्त्वां साकुची खाजडाम्।। लालूषाण्डख! जूरासारखलब्! ऊजाङ्करदालिमभो! नौमि श्रीजिन ! मुद्रसाकरमहं श्रीपानसत्फोऽफलम्॥१॥] __ अस्य व्याख्या ॥ हे श्रीजिन! श्रीवीतराग रसात् “गम्ययपः कर्माधारे”।२।२।७४॥ इति पञ्चमी विभक्तिरसमासे चेत्यर्थः॥ त्वां भवन्तमहं नौमि स्तौमीति संटङ्कः॥ हे आम्ब ! आम्बादीनि पदानि श्रीजिनरूपमुख्यामन्त्रणविशेषणानि । अबुङ् रबुङ् शब्द इत्यस्य धातोरबनं अम्बः भावे घञ्, शब्दो वाणीति यावत् । तत आ समन्तात् विश्वव्यापी अम्बः शब्दो यस्य स तथा, विश्वव्यापित्वं च भगवद्वाण्या घटत एवार्थतो भगवता प्रणीतस्य द्वादशा

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