Book Title: Jain Stotra Sahitya Ek Vihangam Drushti Author(s): Gadadhar Sinh Publisher: Z_Kusumvati_Sadhvi_Abhinandan_Granth_012032.pdf View full book textPage 6
________________ 9 ___ अरहंत स्तवनम्-इसके रचयिता समन्तभद्र किया है । इनके द्वारा रचित एक और स्तोत्र हैहैं जो सम्भवतः प्रसिद्ध समन्तभद्र से भिन्न हैं। द्वात्रिंशिका स्तोत्र। इस में भगवान महावीर की इसका कलेवर छोटा है किन्तु काव्यगुण दृष्टि से स्तुति है। इसका विशिष्ट महत्व है। ३. आचार्य देवनन्दि पूज्यपाद रचित स्तोत्रइन स्तोत्रों के अतिरिक्त प्राकृत में और भी इन्होंने सिद्धभक्ति, श्रु तभक्ति, तीर्थंकरभक्ति आदि । अनेक स्तोत्र लिखे गए हैं जिनमें मानतुंग का भय- से सम्बन्धित बारह स्तोत्रों की रचना की है जो हर स्तोत्र, जिनप्रभसूरि का पासनाह लघुथव, धर्म- 'दसभक्ति' नामक प्रकाशित ग्रन्थ में संकलित है। HD घोषकृत इसिमंडल थोत्त, देवेन्द्रसूरि कृत चत्तारि- ४. पात्रकेशरी स्तोत्र-इसके रचयिता विद्याअट्टदसथव आदि बहत प्रसिद्ध हैं। नन्दि हैं। इसके ५० पद्यों में भगवान महावीर की संस्कृत स्तोत्र-जैन भक्तों ने प्राकृत के अति- स्तुति की गई है। रिक्त संस्कृत, अपभ्रंश एवं आधुनिक भारतीय ५. भक्तामर स्तोत्र-इस स्तोत्र का सम्मान भाषाओं में विपुल परिमाण में स्तोत्र-ग्रंथों की जैनधर्म में बहुत अधिक है । इसके रचयिता आचार्य रचना की है । साधारणतः संस्कृत पद्यों का निर्माण मानतुंग हैं। इसमें कुल ४८ श्लोक हैं । इसका अनुछन्दशास्त्र में उल्लिखित छन्दों में ही किया जाता वाद हिन्दी और अंग्रेजी में भी हुआ है। है किन्तु जैन कवियों की यह विशेषता है कि उन्होंने ६. चतविशति जिन स्तोत्र-यह बप्पभट्रि (सन् । लोकरुचि को ध्यान में रखकर विविध राग-रागि- ७४८-८३८ई०) का लिखा हआ है। इसमें ९६ पद्य नियों एवं देशियों का उपयोग अपने स्तोत्रों में हैं। किंवदन्ती है कि रचयिता ने कन्नौज के राजा किया है । गुजरात एवं राजस्थान के सैकड़ों लोक- यशोवर्मा के पुत्र अमरराज को जैनधर्म में दीक्षित गीत जो अब विस्मृति के गर्भ में विलीन हो चुके हैं किया था। इनके द्वारा रचित एक 'सरस्वती स्तोत्र वे पूरे-के-पूरे जैन कवियों द्वारा रचित रासों, ग्रन्थों भी मिलता है। एवं स्तोत्रों में सुरक्षित हैं। इस दृष्टि से इनके उप- ७. शोभन स्तोत्र-शोभन कवि लिखित होने के कार को साहित्य-संसार भूल नहीं सकता। कारण इसे 'शोभन स्तोत्र' कहते हैं। इनका समय १. स्वयंभ स्तोत्र-संस्कृत में आचार्य समन्तभद्र विक्रम की दसवीं शती है। इसका शब्द-चमत्कार | एवं सिद्धसेन दिवाकर आद्य स्ततिकार माने जाते दर्शनीय है। कवि के भाई घनपाल ने इसकी हैं । आचार्य समन्तभद्र का स्वयम्भू स्तोत्र प्रसिद्ध है टीका लिखी है। जिसका अनुवाद हिन्दी के अनेक जैन कवियों ने द.स्तति चविशतिका-इसके रचयिता सन्दरकिया है। इसके अतिरिक्त इनके कुछ अन्य स्तोत्र गणि हैं जो अकबर के प्रबोधक खरतरगच्छाचार्य भी प्रसिद्ध हैं। जैसे देवागम स्तोत्र, जिनशतक श्री जिनचन्द्रसरि के शिष्य हर्ष विमल के शिष्य थे। (व आदि। इसमें १३ प्रकार के छन्द हैं। इसमें यमक की छटा २. कल्याण मन्दिर स्तोत्र-यह आचार्य सिद्ध दर्शनीय है। इसकी प्रत्येक स्तुति के चार पदों में सेन दिवाकर द्वारा रचित है। इसमें कुल ४४ पद्य प्रथम में किसी एक तीर्थकर की स्तुति, दूसरे में हैं । इस स्तोत्र की मान्यता जैनों के सभी सम्प्रदायों सर्व जिनों की, तृतीय में जिन प्रवचन और चौथे में में है। हिन्दी के जैन कवियों ने इसका भी अनुवाद शासन-सेवक देवों का स्मरण किया गया है। १ अनेकान्त वर्ष १८, किरण ३ में प्रकाशित । पंचम खण्ड : जैन साहित्य और इतिहास 29. साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ 066 Jain Education International For Aivate & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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