Book Title: Jain Stotra Sahitya Ek Vihangam Drushti Author(s): Gadadhar Sinh Publisher: Z_Kusumvati_Sadhvi_Abhinandan_Granth_012032.pdf View full book textPage 5
________________ HAVA निवेदित की गई है । मानतुग का समय विक्रम की नाथ की सम्मिलित प्रार्थना है। इस स्तोत्र के सातवीं शताब्दी है। अनुकरण पर १२ वीं शती में जयवल्लभ ने 'अजित उवसग्गहर स्तोत्र' भद्रबाह की रचना है। ये शान्ति स्तोत्र' और वीरनन्दि ने 'अजिय संतिथय' भद्रबाहु श्रु त केवली भद्रबाहु से भिन्न हैं। इनका स्तोत्र की रचना की। समय विक्रम की छठी शताब्दी है । इसमें कुल २० शाश्वत चैत्यस्तव-इसकी रचना देवेन्द्रसूरि गाथाएँ हैं । इसमें भगवान पार्श्वनाथ की स्तुति है। हकी ने की है। इनका समय १३ वीं शताब्दी है । इसकी। यह स्तोत्र इतना लोकप्रिय है कि अनेक भौतिक २४ गाथाओं में श्वेताम्बर सम्प्रदाय द्वारा मान्य रोगों के उपचार में इसका प्रयोग किया जाता है। अकृत्रिम चैत्यालयों की संख्या और उनकी भक्ति ऋषभ पञ्चाशिका के रचयिता धनपाल (१० प्रदर्शित है। वीं शती) हैं । इसमें कुल ५० पद्य हैं जिसके प्रारम्भ निर्वाणकाण्ड-यह प्राकृत का प्राचीन स्तोत्र के २० पद्यों में भगवान ऋषभ के जीवन की गाथाएँ है। इसमें कुल २१ गाथाएँ हैं । जैनों के दिगम्बर हैं और शेष ३० में उनकी प्रशंसा की गयी है। ____महावीर स्तोत्र-इसके रचयिता अभयदेव सूरि __ सम्प्रदाय में इसकी बहुत मान्यता है। जिन-जिन हैं। इसमें २२ पद्य हैं। स्थानों पर जैन तीर्थंकरों ने निर्वाण प्राप्त किया का पंचकल्याणक स्तोत्र-जिमवल्लभ सूरि (१२ वीं उनकी प्रार्थना इसमें हैं । एक तरह से इसे जैन तीर्थ शती) ने इसकी की है। इसमें कूल २६ पद्य हैं। इस स्थानों का इतिहास करना चाहिए। पर कई टीकाएँ लिखी गयी हैं। लब्धजित शान्तिस्तवन-इसकी रचना अभयचतुविशति जिनकल्याणकल्प और अम्विकादेवी देवसूरि के शिष्य जिनवल्लभ सूरि द्वारा विक्रम की - कल्प-यह जिनप्रभ सूरि (१४ वीं शताब्दी) रचित बारहवीं शती में हुई। इस स्तोत्र पर धर्मतिलक l है । सूरिजी का स्थान जैन स्तोत्रकारों में बहुत मुनि ने सं. १३२२ वि. में वृत्ति लिखी है। इसमें ऊँचा है । आपने ७०० स्तोत्रों की रचना की थी कुल १७ पद्य हैं । कविता बड़ी मनोरम एवं लालिकिन्तु अभी आपके ७० स्तोत्र ही उपलब्ध हैं। इन त्यपूर्ण है। स्तोत्रों में यमक, श्लेष, चित्र तथा विविध छन्दों का निजात्माष्टकम -इसके रचयिता ‘परमात्मचमत्कार देखा जा सकता है। प्रकाश' के प्रसिद्ध रचयिता योगेन्द्रदेव हैं। इसमें ___अजित संतिथय-यह नंदिषेण रचित है ( कुल आठ पद्य हैं। यह स्तोत्र दार्शनिक भावधारा वीं शताब्दी)। इसमें भगवान अजितनाथ एवं शांति- से ओतप्रोत है। ROY १ साराभाई मणिलाल नबाव द्वारा प्रकाशित 'प्राचीन साहित्य और ग्रन्थावलि' में संग्रहीत सन् १९३२ ई. २ काव्यमाला सप्तम गुच्छक-प. दुर्गाप्रसाद और वासुदेव लक्ष्मण सम्पादित सन् १९२६ ई० । ३ जैन स्तोत्र संदोह (प्रथम भाग), पृ. १६७-६६ ४ मुनि जिनविजय सम्पादित विविध तीर्थकल्प, सिंघी जैन ज्ञानपीठ, शान्ति निकेतन सं. १६६० वि. ५-६ प्राचीन साहित्य और ग्रन्थावलि में संग्रहीत, सन १९३२ ई. ७ वैराग्य शतकादि ग्रन्थ पञ्चकम् में पृ. ५० पर; देवचन्द लालभाई पुस्तकोद्धार फंड द्वारा सूरत से सन् १९४१ में प्रकाशित । - 'सिद्धान्तसारादि संग्रह' में संकलित, प्रकाशक-दि. जैन ग्रन्थमाला बम्बई वि. सं. १९०६ पंचम खण्ड : जैन साहित्य और इतिहास 60 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ । www.jainsbrary.orgPage Navigation
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