Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 01
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 9
________________ ॥ श्री वीतरागाय नमः॥ जैन सिद्धांत प्रवेश रत्नमाला णमो परहंतारणं, णमो सिद्धाणं, णमो पाइरियारणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्व साहूणं ॥ प्रात्मा ज्ञानं स्वयं ज्ञानं, ज्ञानादन्यत्करोति किम् । परभावस्य कर्तात्मा, मोहोऽयं व्यवहारिणाम् ।। गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागू पांय । बलिहारी गुरु कहान की, भगवन दियो बताय ।। पाठ पहिला प्र० १. तुम कौन हो? उ० मैं ज्ञान दर्शन चारित्र आदि अनन्त गुणों का प्रभेद पिण्ड प्रात्मा हूँ प्र० २. तुम कौन नहीं हो ? उ० अत्यन्त भिन्न पदार्थ, आंख, नाक, शरीर, मन, वाणी, पाठ कर्म शुभाशुभ विकार में नहीं हूं।


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