Book Title: Jain Siddhant Kaumudi
Author(s): Ratnachandraswami
Publisher: Bhairavdan Sethia

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Page 327
________________ (२) से किया जाता है। कई मासिक साप्ताहिक तथा दैनिक समाचार पत्रमंगाये जाते हैं, जो वाचकों को विनाकीस वांचने को मिलते हैं। इस ग्रन्थालय में विद्वान जैनसूत्र सिद्धान्तों का संशोधन तथा हिन्दी अनुवाद करते हैं । लेखकां से मत्र सिद्धान्तों की प्रतियां लिखाई जाती है, तथा प्राचीन प्रतियों से मिलान कराया जाता है। __इस ग्रन्थालय से जैनधर्म सम्बन्धी ग्रन्थ प्रकाशित होते हैं, जिनका मूल्य लागत से भी कम रक्खा जाता है, तथा कुछ पुस्तकें अमूल्य भी वितरण की जाती हैं । इस शास्त्रभण्डार से एक सेठिया जैन ग्रन्थमाला प्रकाशित होती है। जिसके ५१ पुष्प निकल चुके हैं। इस ग्रन्थालय से दीक्षाभिलाषियोंको स्वाध्याय तथा कण्ठस्थ करनेके लिए दशवकालिक, उत्तराध्ययन, नमिपव्वजा,महावीरजिनस्तुति(पुच्छिसुण)आदि ग्रन्था लय से प्रकाशित हुई पुस्तकें मंगाने से नाम पता पूरा स्पष्ट अक्षरों में आनेपर एक एक प्रति भेंट भेजी जाती है। ___ इस स्थान में दीक्षाभिलाषा (वैरागी भाई और वैरा. गिन बाई ) को दीक्षा का समय निश्चित होने पर वस्त्र पात्र रजोहरण आदि दीक्षा के उपकरण और हस्तलिखित मूलपाठ-दशवकालिक, उत्तराध्ययन, नंदी, सुखविपाक आदि संशोधन की गई प्रतियाँ, तथा कई एक ग्रन्थालय से छपी हुई पुस्तकें विना मूल्य मिलती हैं। Aho! Shrutgyanam

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