Book Title: Jain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02 Author(s): Shivprasad Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat View full book textPage 6
________________ ६७४ जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास श्री श्रीराजरत्नसूरयस्तत्पट्टे श्रीरत्नकीर्तिसूरि ........... श्रीसंघस्य। __ मूलनायक की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख, आदिनाथ जिनालय, हीरावाड़ी, नागौर। ___ इस अभिलेख में रत्नकीर्तिसूरि का प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में उल्लेख मिलने के साथ-साथ उनके गुरु राजरत्नसूरि और प्रगुरु सोमरत्नसूरि का भी नाम मिलता है : सोमरत्नसूरि राजरत्नसूरि रत्नकीर्तिसूरि (वि० सं० १५९६ में आदिनाथ की प्रतिमा के प्रतिष्ठापक) जैसा कि ऊपर हम देख चुके हैं नागपुरीयतपागच्छीय सोमरत्नसूरि का वि० सं० १५५१ के एक लेख में प्रतिमा प्रतिष्ठापक के रूप में उल्लेख मिलता है । अतः इन्हें समसामयिकता और नामसाम्य के आधार पर रत्नकीर्ति के प्रगुरु और राजरत्नसूरि के गुरु सोमरत्नसूरि से अभिन्न माना जा सकता है। इस गच्छ का उल्लेख करने वाला अंतिम अभिलेखीय साक्ष्य वि० सं० १६६७ का है। इस लेख का मूलपाठ भी हमें विनयसागर जी द्वारा ही प्राप्त होता है जो इस प्रकार है : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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