Book Title: Jain Shwetambar Gaccho ka Sankshipta Itihas Part 02 Author(s): Shivprasad Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat View full book textPage 9
________________ नागपुरीयतपागच्छ ६७७ राजरत्नसूरि चन्द्रकीर्तिसूरि (सारस्वतव्याकरणदीपिका की हर्षकीर्ति प्रथमादर्शप्रति के लेखक) चन्द्रकीर्तिसूरि द्वारा रचित धातुपाठविवरण, छन्दकोशटीका आदि कई कृतियां प्राप्त होती हैं । इसी प्रकार इनके शिष्य हर्षकीर्ति भी अपने समय के प्रसिद्ध रचनाकार थे । इनके द्वारा रचित सारस्वतव्याकरण धातुपाठ (रचनाकाल वि० सं० १६६३/ई० स० १६०७), योगचिन्तामणि अपरनाम वैद्यकसारोद्धार, शारदीयनाममाला, अजियसंतिथव (अजितशांतिस्तव), उवसग्गहरथोत्त (उपसर्गहरस्तोत्र), धातुपाठ, नवकारमंत्र, (नमस्कारमंत्र), बृहच्छांतिथव (बृहदशान्तिस्तव), लघुशान्तिस्तोत्र, सिन्दूरप्रकर आदि विभिन्न कृतियां प्राप्त होती हैं। गोपालभट्ट द्वारा रचित सारस्वतव्याकरण पर वृत्ति के रचनाकार भावचन्द्र भी नागपुरीयतपागच्छ के थे। अपनी उक्त कृति की प्रशस्ति में इन्होंने अपने गुरु-परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है: चन्द्रकीर्तिसूरि पद्मचन्द्र भावचन्द्र (सारस्वतव्याकरणवृत्ति अपरनाम गोपालटीका के रचनाकार) ऊपर सारस्वतव्याकरणदीपिका की प्रशस्ति में हम देख चुके हैं कि किन्ही पद्मचन्द्र की प्रार्थना पर उक्त कृति की रचना की गयी थी। इससे यह प्रतीत होता है कि मुनि पद्मचन्द्र का रचनाकार से अवश्य ही निकट सम्बन्ध रहा होगा । ऊपर हम गोपालटीका की प्रशस्ति में देख Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 698