Book Title: Jain Shastro me Mantravad
Author(s): Prakashchandra Singhi
Publisher: Z_Jaganmohanlal_Pandit_Sadhuwad_Granth_012026.pdf

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Page 5
________________ ३ जैन शास्त्रों में मन्ववाद २०१ । (iv) विशिष्ट एवं वर्गीकृत ध्वनि । (v) नियत ध्वनियों के समूह की आवृत्ति । (७) वर्तमान अर्थ (i) योग के द्वारा मन को मारने/नियंत्रित करने की विधि । (ii) मन/मनोकामना की रक्षा/पूर्ति करने की विधि । (iii) एकाग्रता एवं अंतःशक्ति के उद्भव का विज्ञान । (iv) संकल्पशक्ति से परिपक्व विचार । (v) सूक्ष्य के माध्यम से स्थूल के प्रमाबी सूत्र । इन सभी अर्थो के भाव समान हैं। ये परिभाषाय मंत्र के तीन रूपों को व्यक्त करती हैं जिनसे स्पष्ट होता है कि मंत्र (१) स्वरूप-गतः विशिष्ट अक्षर-रचना, विशिष्ट एवं वर्गीकृत ध्वनि, नियत ध्वनि-समूह की आवृत्ति । (२) उद्देश्यगतः (i) लौकिकः मन का नियंत्रण, मनोकामना की पूर्ति । (i) आध्यात्मिकः मन की एकाग्रता, उच्च आत्माओं का सत्कार, आत्मानुभूति, ___ अंतःशक्ति का उद्भव । (३) क्रियागतः ज्ञान, विचार, मनन, सत्कार एवं ध्वनि समूह के आवृत्ति की क्रिया। ध्वनि समूह और मन से प्रकटतः सम्बन्धित है। मन को तीब्रगामी अश्व कहा गया है। उसकी प्रवृत्ति और शक्ति, सामान्य दशा में विखरी रहती है। मंत्र द्वारा यह शक्ति विन्दु या दिशा में प्रेरित की जाती है । इससे व्यक्ति अपरिमित शक्ति-स्रोत बन जाता है। यही कार्य-साधिका है । इस आधार पर मंत्र ध्यान का ही एक रूप है । ध्यान के विविध चरणों में मंत्रपाठ महत्त्वपूर्ण है। मंत्रों के स्वरूप के आधार पर यदि हम उन्हें शब्द ध्वनि की लीला कहें, तो उपयुक्त ही होगा। इस ध्वनि लीला पर शास्त्रीय एवं वैज्ञानिक मंथन हुआ है । जैन शास्त्रों के अनुसार शब्द या ध्वनि पुद्गल या ऊर्जायुक्त सूक्ष्म कणमय पदार्थ है। ये ध्वनियाँ तीब्रगामी मन-प्राण के संयोग से अति बलवान् एवं शक्ति सम्पन्न हो जाती हैं। जब शब्दों का उच्चारण होता है, तो वीची-तरंग माय से आकाश में कम्पन उत्पन्न होते हैं। इनकी प्रकृति उच्चारित शब्द की तीव्रता, आवृत्ति या तरंगदैर्ध्य पर निर्भर करती है। इन कम्पनों का पुंज अपने केन्द्र पर लौटने तक पर्याप्त शक्तिशाली हो जाता है। इस शक्ति का अनुभव मंत्र-साधक के आश्चर्य का विषय होता है। लेकिन इस आल्हादक शक्ति पर वह तब विश्वास करने लगता है जब वह देखता है : बीन बजाने से सर्प मोहित हो जाता है मधुर संगीत से हिरण मदमस्त हो जाते हैं मल्हार राग से मेघ बरसने लगते हैं राग से दीपक जलने लगते हैं, विष उतर जाते हैं विशिष्ट संगीत ध्वनियों से पौधों की वृद्धि तीब्र होती है संगीत से पशु अधिक दूध देने लगते हैं पराश्रव्य ध्वनि से चिकित्सा होने लगी है इसी ध्वनि से लोहा काटा जा सकता है यही ध्वनि कर्ण पट को आघात द्वारा कम्पित करती है ध्वनि चेहरे के भाव प्रकट करती है ध्वनि मन को भावना-प्रेरित करती है और सुनने वाले को प्रभावित करती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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