Book Title: Jain Shastro me Mantravad
Author(s): Prakashchandra Singhi
Publisher: Z_Jaganmohanlal_Pandit_Sadhuwad_Granth_012026.pdf
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२०६ पं० जगमोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ
[खण्ड फलितार्थ से उनकी जपनीयता एवं उपयोगिता प्रकट होती है। महाप्रज्ञ ने मंत्र के चार अवयव बताये हैं : शब्द अर्ध, उच्चारण और भावना। ये घटक मंत्र की प्राणवत्ता के निरूपक हैं।
सारणी ३. लघु शांतिमंत्र का फलितार्थ ओम्
तेजोवीज, कामवीज, प्रणव वाचक, सिद्धिदायक सर्वशांति, मंगल, कल्याण प्रणववीज, शक्ति द्योतक विषापहार वीज प्रणववीज, शक्ति द्योतक सर्व समीहित साधक शक्ति, बुद्धि, धन, आशा अद्भुत शक्तिशाली
धन व आशापूरक सर्वशांति
कार्यसाधक, चमत्कारोत्पादक, हितैषी सुयश, शक्ति, उत्पादक
शक्ति प्रस्फोटक, वर्धक स्वाहा
शांतिकर, हवन वाचक पल्लव
स्वाहा, ओम् मंत्रलिंग
स्त्रीलिंग कुछ विशिष्ट मंत्र
जैन शास्त्रों में लोकिक, धार्मिक एवं आध्यात्मिक उद्देश्यों के लिये विशिष्ट मंत्र पाये जाते हैं। इनका जप विशिष्ट अवसरों पर किया जाता है । इनमें से कुछ मंत्र यहाँ दिये जा रहे हैं :
१. अधित्य फलदायक मंत्र-ओम् ह्रीं स्वहं णमो णमो अरिहंताणं ह्रीं नमः ।
२. रोगनिवारक मंत्र-ओम् णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं, णमो उवझायाणं, णमो लोए सध्वसाहणं । ओम् णमो भगवति, सुअदे, वयाणवार संग एव, यण जागणीये, सरस्सई ए सव्व, वाइणि सवणवणे, ओम् अवतर अबतर देवि, मय सरीरं वपिस पुछ, तस्स पविससत्व, जण मयहरीये अरिहंत सिरिसरिये स्वाहा।
३. अग्नि निवारक मंत्र-ओम् णमो, ओम् अहं, अ सि आ उ सा, णमो अरिहंताणं नमः ।
४. लक्ष्मी प्राप्ति मंत्र-ओम् णमो अरिहंताणं, ओम् णमो सिद्धाणं, ओम् णमो आइरियाणं, ओम् णमो उवज्झायाणं, ओम् णमो लोए सव्वसाहूणं । ओम् ह्रां ह्रीं ह्र ह्रौं ह्रः स्वाहा ।
५. सर्वसिद्धि नंत्र-(१) ओम् असि आ उ सा नमः ( सवा लाख जप ), (२) ओम् ह्रीं श्रीं क्लीं नमः स्वाहा ६. शान्ति मंत्र-ये तीन प्रकार के हैं : वृहत, मध्यम और लघु । यहाँ मध्यम और लघु मंत्र दिये जा रहे हैं : मध्यम शान्ति मंत्र-ओम् ह्रां ह्रीं ह्र. ह्रौं ह्रः अ सि आ उ सा सर्वशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ( २१ अक्षर ) लघु शान्ति मंत्र-ओम् ह्रीं अहं अ सि आ उ सा सर्वशांतिं कुरु कुरु स्वाहा ( १९ अक्षर ) सर्वशान्ति मंत्र-ओम् ह्रीं श्रीं क्लू ब्लू अहं नमः
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