Book Title: Jain Shastro me Mantravad
Author(s): Prakashchandra Singhi
Publisher: Z_Jaganmohanlal_Pandit_Sadhuwad_Granth_012026.pdf

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Page 8
________________ [खण्ड वर्ण वायु ब्रा. तालु वा. ताल ब्रा. A P HAMA पृथ्वी ब्रा. ब्रा. बा. वा. २०४ पं० जगमोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ सारणी २-ध्वनियों/वीजाक्षरों से संबंधित विवरण क्र. अक्षर उच्चारण वोज तत्व लिंग अ कंठ आकाश, प्रणव कंठ सुख वीज वायु अग्निवीज अग्नि गुणवीज अग्मि ओष्ठ वायुवीज पृथ्वी ओष्ठ कंठ-ताल अरिष्ट नि. जल कंठ-तालु वशी वीजमूल जल कंठोष्ठ मायावीजमूल आकाश __ कंठोष्ठ अनेक वीजमूल आकाश नासिका लक्ष्मी, आकाश आकाश कंठ शान्ति वीज आकाश ऋद्धि वीज वायु, अग्नि दन्त लक्ष्मी वीजमूल पृथ्वी,जल क कंठ शक्ति वीज आकाश वीज वायु प्रणव वीजमूल १८. घ स्तंभन/मोहन . वायु विध्वंसन वायु उच्चा० वीजमूल अग्नि माया वीजमूल अग्नि आकर्षण वीजमूल अग्नि श्री वीजमूल अग्नि स्तंभन मोहन अशुभ वीजमूल चंद्र वीज 984493IMAA 44 मूर्धा वायु वायु शक्ति/सामर्थ्य सर्वशक्ति धन, आशा मृदु कार्य साधक अल्प शक्ति अद्भुत शक्ति विघटन निश्चल उदात्त अनुदात्त शीघ्र कार्यसाधक मृदु शक्ति सहयोगी सिद्धिदायक सत्य संचारक सुखोत्पादक कल्प वृक्ष साधक स्तंभन विध्वंसक खंड शक्ति शक्ति विध्वंस रोग नाश, सिद्धि शक्ति संचार अवरोधक अशान्ति निकृष्ट कार्य शान्ति विरोधी शान्ति, शक्ति शान्ति, शक्ति सर्व सिद्धि मंगल साधक आत्म शक्ति सहयोगी आत्म सिद्धि सहयोगी कठोर कार्य विघ्न विनाश अग्नि पृथ्वी GAL GAGAAAAAEE GAAAAAAAAAAAA पृथ्वी पृथ्वी जल पृथ्वी पृथ्वी 84444444_ol or मारण/माया वीजमूल आकाश/ध्वंस मूल आकर्षण बीज लक्ष्मी बीजमूल वशो० वीजमूल माया वीजमूल जल पृथ्वो ३२. ३३. ३४. ३५. ३६. ओष्ठ , जल जल आकाश आकाश आकाश सिद्धि वीजमूल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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