Book Title: Jain Shastro me Ahar Vigyan
Author(s): Nandlal Jain
Publisher: Z_Parshvanath_Vidyapith_Swarna_Jayanti_Granth_012051.pdf

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Page 9
________________ जैन शास्त्रों में आहार विज्ञान १८९ वैज्ञानिक विभिन्न प्राकृतिक खाद्य-पदार्थों को उनके प्रमुख घटक के आधार पर वर्गीकृत करते हैं क्योंकि उनमें इसके अतिरिक्त अन्य उपयोगी घटक भी अल्पमात्रा में पाये जाते हैं। ये अल्पमात्रिक घटक खाद्यों की सुपाच्यता, पार्श्वप्रभावरहितता तथा ऊर्जाप्रभाव को नियन्त्रित करते हैं। यदि हम शास्त्रीय विवरण का इस आधार पर अध्ययन करें, तो प्रतीत होता है कि अशनादि घटक ( अशनः ठोस; पानः द्रव; खाद्यः फल-मेवे; स्वाद्यः विटामिनादि ) विशिष्ट आहार वर्ग को निरूपित करते हैं। उस समय रासायनिक विश्लेषण के आधार पर तो वर्गीकरण सम्भव नहीं था, अतः केवल अवस्था ( ठोस, द्रव एवम् गैसीय अवस्था की धारणा भी नगण्य थी) के आधार पर ही वर्गीकरण सम्भव था। अशन को धान्य जातिक मानने पर यह देखा जाता है कि उसके 7/18/24 भेदों में वर्तमान वैज्ञानिकों द्वारा मान्य तीन प्रमुख कोटियाँ समाहित हैं। पान को द्रव-आहार मानने पर उसमें जल' फल-रस, द्राक्षा-जल, मांड, दूध, दही आदि समाहित होते हैं। इनमें भी वैज्ञानिकों द्वारा मान्य तीनों प्रमुख व अन्य कोटियों के पदार्थ हैं । मांड, द्राक्षाजल कार्बोहाइड्रेट हैं, दही प्रोटीन/वसीय है, नीबू, फल-रस विटामिन-खनिज तत्त्वी हैं। द्रवाहार से शरीर क्रियात्मक परिवहन एवं सन्तुलन बना रहता है। वैज्ञानिक जल को छोड़कर अन्य पानकों को उनके प्रमुख घटकों के आधार पर ही वर्गीकृत करते हैं। द्रव घटकों में प्रमुख कोटियों के अतिरिक्त दो अन्य कोटियाँ भी पायी जाती हैं। खाद्य-घटक के अंतर्गत दिये गये उदाहरणों से इसमें मुख्यतः फल-मेवे और एकाधिक घटकों के मिश्रण से बने खाद्य आते हैं -पुआ, लड्डू, खजूर आदि । स्वाद्य कोटि के उदाहरणों से खनिज, ऐल्केलायड तथा अल्पमात्रिक घटकी पदार्थों (पान, इलायची, लौंग, कालीमिर्च, औषध आदि) की सूचना मिलती है। इसे वैज्ञानिकों की उपरोक्त ४-५ कोटियों में रखा जा सकता है। उपरोक्त समीक्षण से यह स्पष्ट है कि शास्त्रीय विवरण में आहार सम्बन्धी घटकगण वर्गीकरण व्यापक तो है, पर यह पर्याप्त स्थूल, मिश्रित और अस्पष्ट है। इसे अधिक यथार्थ । प्रस्तुत करने की आवश्यकता है। फिर भी इस विवरण से यह ज्ञात होता है कि जैन शास्त्रों में वर्णित आहार-विज्ञान में वर्तमान में मान्य सभी घटकों को समाहित करने वाले खाद्य पदार्थ सम्मिलित किये गये हैं। मधुसेन' का यह मत सही प्रतीत होता है कि शास्त्रीय युग में सैद्धान्तिक दृष्टि से आहार के वर्तमान पौष्टिकता के सभी तत्त्व परोक्षतः समाहित थे। उपरोक्त घटकों के उदाहरणों से एक मनोरंजक तथ्य सामने आता है। इनमें वनस्पतिज शाकभाजी सामान्यतः समाहित नहीं हैं। वे किस कोटि में रखी जावें, यह स्पष्ट नहीं है तथापि शास्त्रों में उनकी भक्ष्यता की दशाओं पर विचार किया गया है। आहार का काल आशाधर ने बताया है कि द्रव्य, क्षेत्र, काल ( ऋतुएँ, दिन ), भाव एवं शरीर के पाचन सामर्थ्य की समीक्षा कर शारीरिक एवम् मानसिक स्वास्थ्य के लिए भोजन करना १. डा० मधुसेन, कञ्चरल स्टडी ऑफ निशीय चूर्णि, पा० वि० शोध संस्थान वाराणसी, पृ० १२५ २. अनगार धर्मामृत, पृ० ४०९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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