Book Title: Jain_Satyaprakash 1954 11 12
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . २ श्री. सुमतिसंभव नामक ऐतिहासिक काव्यकी उपलब्धि । लेखक :-श्रीयुत भवरलालजी नाहटा. मध्यकालीन जैन इतिहासके साधन बहुत ही प्रचुर हैं । प्रतिमालेख, प्रशस्तिलेख, पट्टावलिएं, वंशावलिएं, पुष्पिकाएं, तीर्थमालाएं, चैत्यपरिपाटिय, ऐतिहासिक काव्य, गीत, रास आदि विविध प्रकारको सामग्री उपलब्ध है। जिनके आधार इतिहास ही नहीं, भारतीय इतिहासकी बहुत ही तथ्यपूर्ण जानकारी प्राप्त है । ग्यारहवीं शतीके पश्चात् ऐतिहासिक साधनोंका प्राचुर्य उल्लेखनीय रूपमें वृद्धिंगत पाया जाता है। पूर्ववर्ती इतिवृत्तको संकलन करनेका प्रयत्न करनेके साथ साथ समकालीन इतिहासके संकलनका प्रयत्न 'प्रबन्ध संग्रह ' आदि ग्रंथोंमें दृग्गोचर होता है। जैन आचार्यों और श्राककोंके इतिवृत्त संबन्धी अनेकों सुन्दर काव्य संस्कृत एवं लोकभाषामें रचे गए, उनमेंसे अधिकांश सामग्रीको प्रकाशित करनेका गत २५-३० वर्षों में स्तुत्य प्रयत्न हुआ है, फिर भी अभी तक बहुतसे महत्त्वपूर्ण ग्रंथ अप्रकाशित अवस्थामें पडे हैं । कुछ ग्रन्थोंकी तो हस्तलिखित संग्रहालयोंके शोधके अभावमें हमें जानकारी तक भी नहीं है । जैन भण्डारोंके अतिरिक्त बहुतसे सरकारी एवं विदेशी संग्रहालयोंमें भी हजारों जैन हस्तलिखित प्रतियां पायी जाती हैं जिनकी ओर हमारे मुनियों एवं विद्वानों का ध्यान कम ही जाता है। कलकत्तेकी एसियाटिक सोसाइटीका हस्तलिखित संग्रह ही बहुत महत्त्वपूर्ण है। इसके कई विषयोंके तो विवरणात्मक सूचीपत्र प्रकाशित हो चुके हैं जिनमें बहुतसे जैन ग्रन्थ भी हैं। पर जैन विभागकी प्रतियोंको नामावली मात्र ही बहुत वर्ष पूर्व प्रकाशित हुई थी जिसके कागज भी जर्जरित हो गए हैं। श्रीअजितरंजन भट्टाचार्यने जैन ग्रन्थों का सूचीपत्र हाल होमें बनाया है जो अभी छप रहा है। कुछ वर्ष पूर्व जैन ग्रन्थोंकी उपर्युक्त नाम सूची देखने पर उसमें कुछ ग्रन्थ अन्यत्र अनुपलब्ध एवं अज्ञातसे प्रतीत हुए अतः उन प्रतियोंको स्वयं देख लेना आवश्यक समझ आज ही हम सोसाइटीमें पहुंचे और सौभाग्यवश एक अज्ञात ऐतिहासिक काव्यको उपलब्धि हुई । जिसका परिचय नीचेकी पंक्तियोंमें दिया जा रहा है। इस काव्यका नाम "सुमतिसंभव महाकाव्य" है । इसके प्रणेता तपागच्छीय सुकवि सर्वविजय है । काव्य ८ सौका है और इसमें श्रीसुमतिसाधुसूरिका गुणवर्णन किया गया है। काव्यको दृष्टिसे यह एक सुन्दर ग्रन्थ है, इतिहासकी दृष्टि से तो महत्त्वपूर्ण है ही। इसके प्रारंभिक ६ सगौंमें श्रीसुमतिसाधुसूरिजीके जन्मस्थान, जन्मोत्सव, दीक्षा, गुरुपरंपाका वर्णन है सातवें और आठवें सर्गमें माण्डवगढ़ निवासी "मालवभूपाल" तथा 'लघुशालिभद्र' बिरुद विभूषित जावड़साहके व्रतग्रहण एवं प्रतिष्ठा महोत्सवादि धार्मिक कार्योंका महत्त्वपूर्ण वर्णन है। For Private And Personal Use Only

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