Book Title: Jain_Satyaprakash 1954 10
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ : १] ભેજ પુરકા જૈન મંદિર [२१ इसमें हुआ है । कलचुरियोंका प्रभाव भी पडा है जो स्वाभाविक है। मेरे साथ जो सरकारी फोटोग्राफर थे उससे बडी कठिनाईसे प्रतिमाका चित्र लिया जा सका-वह भी दो प्लेट्स्में। प्रतिमाओंके दोनों ओर सीढो बनी है। बिना सीढीके अभिषेक असंभव है। प्रतिमाओंकी विशालता देखते हुए गर्भगृह पर्याप्त नहीं है । वह शायद ही २२ फोट चौडा रहा होगा। पर मंदिरकी विस्तृत परिधिसे अवगत होता है और कहा जा सकता है कि किसी समय वह ४ फागमें फैला रहा होगा। चारों और बहुत दूर-दूर तक अवशेष व दीवारोंके चिह्न विद्यमान हैं। प्रतिमा पर १२वीं शताब्दीका लेख है पर वह इतना अस्पष्ट है कि उसका पढा जाना संभव न था कारण कि न तो हमारे पास उस समय इतना अवकाश था न उचित प्रकाश हीका समुचित प्रबंध था। दूसरा कारण यह भी था कि गर्भगृह कुछ गहराईको लिए हुए है। मंदिरके पास ही एक ध्वस्त खंडहरमें भैरूजीका स्थान बना है । जनता, स्वार्थमूलक भावनावश इनका यथोचित सम्मान करती है। यही तो जंगलके देवता भी माने जाते हैं। शैव-मंदिरमें जैन प्रतिमा शैव मंदिरकी दीवारोंका पुननिर्माण भी अवशेषोसे ही हुआ जान पड़ता है। एक दीवालमें अंबिका-गोमेध यक्षयुक्त भगवान् नेमिनाथकी प्रतिमा चिपका रक्खी है। इस शैव मंदिरके निर्माणमें जैनावशेषोंका खूब उपयोग हुआ है । शिल्प-अध्ययनशाला कठोर प्रस्तर पर कमनीय भावावलियां तो भोजपुरकी आत्मा ही है किन्तु सबसे बडी विशेषता जो वहां विद्यमान है, मेरी विनम्र सम्पतिमें वह अनुपम है। सुन्दरतम शिल्पकृतियोंका निर्माण तो भारतके अन्य प्रान्तोंमें भी हुआ। कलाकारोंने हर्षोन्मत्त होकर जनताको रसद्वारा आनन्दका अनुभव भी कराया किन्तु उन कलाकारोंकी भावज्योतिको उद्दीपित करनेवाली प्रेरणाका प्रकाश कहांसे मिला और उनका खाका कैसा था आदिकी कल्पना ही क्लिष्ट है । भोजपुर इसका अपवाद है। मंदिरके निकट खुले मेदानोंकी चट्टानों पर कहीं प्रतिमाएं, कहीं स्तंभाकृतियां, कहीं जामितीय रेखाएं, आदिके विराट चित्रण-उत्खनन मिलते हैं। ऐसा लगता है कि जैसे बहुतसे शिल्पी इन्हें देखकर अपनी कृतियों का निर्माण करते रहे होंगे। भोजपुरके मंदिरोका कलाकौशल नयनप्रिय है। इसके समस्त अवशेषों पर विस्तृत रूपसे प्रकाश डालनेवाला मैंने एक स्वतंत्र ग्रंथ ही, भोपालके चीफ कमिश्नर श्रीभगवान सहाय आइ. सी. एस. और लोकप्रिय प्रधान मंत्री श्री डा. शंकरदयाल शर्माके आग्रहसे सचित्र तैयार किया है जो शीघ्र हीमें भोपाल सरकारकी ओर से प्रकाशित हो रहा है । अंतमें हर्षमय संवाद देकर निबंध समाप्त करूंगा। मेरे मित्र श्रीकृष्णदेवजी (सुपरिटेंडेंट आफ आर्कियोलोजी)ने मंदिरकी रक्षाका भार अपने ऊपर लेना स्वीकार कर लिया है और भोपाल शासनने पक्का मार्ग बनाना स्वीकार किया है । For Private And Personal Use Only

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