Book Title: Jain_Satyaprakash 1954 10
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 24
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 'उस्तरलाव' यंत्र संबंधी एक महत्त्वपूर्ण जैन ग्रन्थ । लेखक :-श्रीयुत अगरचंदजी नाहटा भारतीय मनीषियोंकी उदार भावना विशेषरूपसे उल्लेखयोग्य रही है। इसीसे विदेशी जो कि भारतमें आये थे यहांके निवासियों के साथ घुलमिलसे गये। उनके मान्य देवी-देवता रीति-रिवाज और बहुतसी मान्यताओंको भारतियोंने अपने में मिला दिया । भारतमें जो पारस्परिक विरोधीसे विभिन्न आचार और विचार पाये जाते हैं वे इसी देशी और विदेशी संस्कृतिके संगमके परिचायक हैं। इन अवशेषों द्वारा हम भारतनिवासियोंकी उदार नीतिका अच्छा अनुमान लगा सकते हैं। संस्कृतिकी भांति साहित्यादि क्षेत्रोमे हमें भारतीय मनिषियोंकी उसी उदार नीतिका परिचय मिलता है। भारतीय वैद्यक और ज्योतिष--विज्ञानको ही लीजिए; उसमें ग्रीक, यूनान फारस आदि कई विदेशोंके विज्ञानको अपनाया गया प्रतीत होगा। तिब्बसहावी आदि विदेशी वैद्यक ग्रंथोंके कई हिन्दी पद्यानुवाद प्राप्त हैं, जिनमेंसे जैन विद्वान मलूकचन्दका “वैद्य-विलास नाम अनुवाद भी उल्लेख योग्य है। इसी प्रकार ज्योतिष में रमल आदि विद्याएं, शकुनावली आदि ग्रंथ अब यही भारतीय विद्वानों द्वारा संस्कृत और हिन्दी दोनों भाषाओंमें पाये जाते हैं। जैन विद्वान मेघविजय, विजयदेव मुनि एवं भोजसागरके रमलशास्त्र उपलब्ध है। बीकानेर राज्यकी अनूप संस्कृत लायब्रेरीमें एक ऐसा ग्रंथ उपलब्ध हुआ है जो फारसके ज्योतिष विज्ञानसे संबद्ध है । प्रस्तुत ग्रंथका नाम ' उस्तारलाव यंत्र' सटीक है। अभी तक यह सर्वथा अज्ञात रूपमें रहा है और उसकी एक मात्र प्रतिलिपि उक्त लायब्रेरीमें ही उपलब्ध हुई है। अपने विषय पर भी भारतीय विद्वानों द्वारा रचित यह एक ही ग्रंथ है। इस कारण इसका महत्त्व निर्विवाद है। कई वर्ष पूर्व मैंने यह ग्रंथ देखा था पर उस समय इसका नाम विचित्रसा लगनेके साथ विषय भी स्पष्ट नहीं हो सका था, इसीलिये अब तक उस पर प्रकाश नहीं डाला गया । जब विद्वद्वर्य पूज्य मुनि श्रीपुण्यविजयजीका चतुर्मास बीकानेरमें हुआ था और पुरातत्त्वाचार्य मुनि जिनविजयजीका हमारे यहाँ पधारना हुआ, अतः इन दोनो विद्वानों और अन्य मुनियोंको मैं अनूप --- संस्कृत -- लायोरीका अवलोकन करानेके लिये ले गया तब इस ग्रंथकी प्रतिको देखकर मुनि पुण्यविजयजी और विनयसागरजीको ग्रंथका नाम बड़ा विचित्र सा लगा और उन्होंने मुझसे पूछा कि यह ग्रंथ किस विषयका है ! मेरे यह कहने पर कि ग्रंथ मैं पहले ही देख चुका हूं, विषय स्पष्ट नहीं हुआ, तो आपने उसे देखना प्रारंभ किया और उक्त लायब्रेरीमें पीतलके कुछ यंत्र ज्योतिष संबंधी पड़े हुए थे, ऐसे ही किसी यंत्रसे संबंधित इस ग्रंथको बतलाया । उस समय तो अवकाशाभावसे उसको पढ़कर विशेष नोट नहीं ले सका, पर इस महत्त्वपूर्ण ग्रंथका परिचय विद्वत्-जगत्को अवश्य कराना For Private And Personal Use Only

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