Book Title: Jain_Satyaprakash 1953 06
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir As : ] मा मत पट्टालीम भित Sat alsu [१६५ रही है। इसमें से कई ग्रंथ तो उपलब्ध भी हैं पर जो अभी तक अनुपलब्ध हैं उनका पत्ता लगाना नितान्त आवश्यक है। जिस पट्टावलीके आधारसे कडुआमतके विद्वानोंकी रचनाओंका परिचय इस लेखमें दिया जा रहा है उसकी रचना संवत् १६८५के पौष शुक्ला १५ पुष्य नक्षत्रमें कडुआमती शाह कल्याणने ( अष्टम पट्टधर तेजपालको विद्यमानतामें ) की है। देशाईको प्रतिकी पत्र संख्या ३६ है । प्रति पृष्ठ पंक्तियां १४ और प्रति पंक्ति अक्षर ४० से ४५ तक हैं। प्रतिका एक कोना कुछ कट गया है व कुछ किनारा उधेईने भी भक्षित किया है फिर भी मूल वस्तु सुरक्षित है। उसका लेखक कोई खरतरगच्छीय यति है। लेखनकी अशुद्धियें काफी रह गयी हैं। उसकी प्रतिलिपि करनेके बाद मेरे भ्रातृप्पुत्र भंवरलालको विजयधर्मसूरि ज्ञानमंदिर आगरेमें कडुआमतका एक गुटका मिला। जिसमें यह पट्टवली शुद्ध रूपमें लिखित है। उसकी प्रतिलिपि भी भंवरलालने करके मुझे भेज दी थी। अब इस पट्टावलीमें निम्नलिखित कडुआमतके साहित्यकी सूची दी जा रही है। १ शाह कडुआकृत(१) हरिहरादिके पद। (२) सझाय-माइबापनी कीजइ भगति विनय करतां रूडा-युगति । जीवदया साची पालइ, शील धरी कुल अजूवालीइ ॥१॥ इत्यादि सज्झाय सर्वत्र सांप्रतं प्रसिद्धस्ति । सं. १५१४ से पूर्व रचित । ( ३ ) स्तवन-" रिसहजिनवर मूरति तुम्ह तणी," स्तवनं कृतं (सं. १५२८ अहमदावाद)। (४) १०१ बोल (प्रस्तुत पट्टावलीमें दिये हैं)। (५)२१ बोल (प्रस्तुत पट्टावलीमें हैं)। (६) १०४ बोल शीलपालनेके । (७) १२३ (११३ ) बोल स्त्रीके शील पालनेके । (८) स्तवन-'जयजगगुरू देवाधिदेव,' (सं. १४ मी वडोदरेमें )।। (९) वीरस्तवन-' सखि सार नय गंधारग्राम' (सं. १५४२ गंधारमें रचित )। (१०) विमलगिरिस्तवन-" विमलगिरिप्रासाद पोढ़उ" (सं. १५४५)। (११) चैत्यपरिपाटीस्तवन-'जिनवर वचन अमृत सम जाणी' (संघयात्रास्थानोंके वर्णन)। (१२) लुपक चञ्चरीपूजा संवर रूप स्थापना ‘पत्र (सं. १५४७ सूर्यपूर )' (तेऽत्र अष्टम पट्टालंकार श्रीतेजपाल पार्श्वेऽस्ति)। (१३) पार्श्वस्तवन--" माहरइ मंदिरि पसिजी" (सं. १५४८ पाटणमें बिम्ब प्रवेश For Private And Personal Use Only

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