Book Title: Jain_Satyaprakash 1953 06
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 26
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९८ ] શ્રી. જૈન સત્ય પ્રકાશ [ वर्ष १८ (५) वासुपूज्य मनोरम फाग (सं० १६९६ माघ सुदि ८ सो० थराद) देखें० गु० क० भा० १, पृ० ५७५ । जै० (६) अमरगुप्त चरित्र (सं० १६९७ पो० सु. १३ देखें - जै० गू० क० भा० १ पृ० ५७६) । (७) महादंडक ९९ द्वार बाळा० पत्र ९ (सं० १७१२ ) । (८) अभिनंदन स्तवन -' प्रभु प्रणमुं रे' स्तंभतीर्थ । १३ लाधाशाह (१) जम्बूरास (सं० १७९४ फा० सुदि २ गु० लोहीग्राम जयचंदजी भंडार ) । (२) सुरतचैत्य परिपाटी (सं० १७९३ मि० च० १० गु० सूरत प्रकाशित) । (३) शिवचंद्रजीनो रास - ( - (सं० १७९५ आसो० सु०५ राजनगर - हमारा संग्रहऐतिहासिक का० सं०' में मुद्रित ) । ( ४ ) पृथ्वीचंद्र -- गुणसागर चरित्र वार्ता (सं० १८७७ मि० सु० ५ २० राधनपुर ) । (५) चौवीशी (सं० १७६० विजयादशमी शुक्र - अहमदावाद ) । शाह कल्याणजीकी चार नंबर रचनाके बादसे जिन रचनाओंकी सूची ऊपर दी गई है वे 'जैन गूर्जर कविओं के आधारसे दी है । कडुआ पट्टावली में इनके अतिरिक्त ब्रह्मरचित 'नागिल-सुमतिरास, चउसरण- टीका और दुदा के साथ वीमाकी वार्ता पत्र - २, आठमी पाखी चर्चा, ऋषिमति उत्पत्ति विशेष वार्ता, आनन्द विमलसूरि वृत्तान्त' आदिका भी उल्लेख है । कडुआ मतका जहां जहां प्रचार अधिक रहा है वहां उनके ज्ञानभंडार भी थे, जिनमें से पाटण, राजनगर, हबतपुर या हछतपुर एवं थरादके भंडारका उल्लेख प्रस्तुत पट्टावली में आया ही है। थरादमें कडुआ - मतका अब भी भंडार है । अन्य तीन स्थानोंमें है या नहीं मुझे पता नहीं । उपर्युक्त कडुआमत साहित्यकी शोध इन भंडारोंमें अवश्य होनी चाहिए। सा० कडुभाने ९००० श्लोक करीबकी रचना की और शाह तेजपालने १०००० श्लोक प्रमाणकी रचना की बताई गई है। इनमें कई ग्रंथ बड़े महत्त्वपूर्ण हैं। जैसे- लंपक वृद्ध हुंडी, लुंपक चर्चासेलोकागच्छकी मान्यताओं और ऋषिमति उत्पत्ति और हुंडी द्वारा तपागच्छ पर कुछ नया प्रकाश मिलेगा । For Private And Personal Use Only

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