Book Title: Jain_Satyaprakash 1942 08
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 30
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [५५०] શ્રી જેને સત્ય પ્રકાશ [१५७ संघपति ने छठी कडाही दो । गांधीवंश के साह जटमल, बच्छा हीरा ने भी सुयश कमाया। राजगृह से संघ बड़गाम आया। यहां ऋपन जिनालय के दर्शन किये। शास्त्रप्रसिद्ध नालन्दापाड़ा यही है जहां त्रिशालानंदन सहावीर प्रभुने १४ चौमासे किये थे। यहां से दक्षिण की तरफ १५०० तापसों की केवलज्ञानभूमि है चार कोनो के चौतरों में २ गौतम पादुका हैं। यहां पूजन कर अनुक्रम से पटना पहुंचे। सुन्दर बगीचे में डेरा किया। साह चांपभी ने प्रथम कडाही दी, महिम के सेठ उदयकरण ने दूसरी, महाराज कल्याणजी ने तीसरी, श्रीवच्छ भोजा साहा जटमल ने चोथी कहाडी दो, कपरा के पुष पचू सचू साह ने पांचवीं कडाही दी, सहिजादपुर निवामी माह सीचाने छठ्ठी, तेजमाल, बरढीया ने सातवीं, लाहोरी साह सुखसल ने जाटवी कडाही दी । संघ वहां से चला । अनुक्रम से गोमती के तट ५ ५.चे स्नान करके भूदेव को दान दीया । जम्मणपुर आए, डेरा दिया भूमिगृह को ४१ जिन प्रतिमाओं का वन्दन किया। साह चौथा, साह विमलदास, साह रेखा ने संघ की भक्ति की। वहां से मार्ग के चैत्यों को वन्दन करते हुए अयोध्या नगर पहुंचे । ऋषभदेव, अजितनाथ, अभिनंदन, सुमतिनाथ और अनंतनाथ तीर्थकर की कल्याणभूमि में पांच थूभों का पूजन किया। सातवीं कडाही की। अयोध्या से रत्नपुरी आए, धर्मनाथ प्रभु को वन्दन किया। इस विशाल संघ के साथ कितने ही नामांकित व्यक्ति थे जिनमें से थोडे नाम समकार ने निम्नोक्त दिये हैं। संघपतिने कुंअरपाल के पुत्र संघराज, चतुर्भुज, साह धनपाल, सुन्दर दास, शूरदास. शिवदास, जेठमल्ल, पदमसी, धम्मासाह, छांगराज, चौधरी दरगू, साह वच्छा, हीरा, साह भोजा, तेजपाल, सुन्दरदास, साह रेखा, साह श्रीवच्छ, जटमल, ऋषभदास, वर्द्धमान, पचू, सबू, कटारु, माह ताराचंद, मेहता वद्धन, सुखा सीचा, सूरदास, पैसारी नरसिंह, सोहिल्ला, मेघराज, कल्याण, कालू, थानसिंग, ताराचंद, मूलदास, हांसा, लीलापति इत्यादि। अनुक्रम से चलते हुए आगरा पहुंचे, सानन्द यात्रा सम्पन्न कर लौटने से सब को अपार हर्ष हुआ। संघगति ने आठवीं कहाडी की। समस्त साधुओं को वस्त्रादि से प्रतिलाभा । याचकों को दो हजार घोडे और तैतीस हाथी दान दोये । स्थानीय संघ ने सुन्दर स्वागत कर संघपति को मोतियों से वधाया। सम्राट जहांगीर सन्मानित संघपतिने गजारूढ होकर नगर में प्रवेश किया। ___संघपति ने सं. १६५७ में शत्रुजय का संघ निकाला, बहुत सी जिनप्रतिमाकों की स्थापना की। बडे बडे जिनालय कराये । सप्तक्षेत्र में द्रव्य व्यय कर चतुर्विध संघ की भक्ती की । बडे बडे धर्मकार्य किये । सं. १६७० में गिरिराज श्री समेतशिखर की यात्रा संघ सहित की जिसके वर्णन स्वरूप यह रास कवि जसकीर्ति मुनि ने बनाकर चार खण्डों में पूर्ण किया। For Private And Personal Use Only

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