Book Title: Jain_Satyaprakash 1942 08
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
[५४८]
શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
[१७
कारा तब उसने संघपति को मनाने के लिए मंत्रो को भेजा । मंत्री ने बहुत सा अनुनय विनय किया पर संघपति ने उसे एकदम कोरा जवाब दे दिया । संघपति संघ सहित नवादा आये, मिरजा अंदुला आकर भिला । उसने कहा-कोई चिन्ता नहीं, गुम्मा (गोमा) का राजा तिलोकचंद होशियार है उसे बुलाता हूं ! मीर्जा ने तत्काल अपना मेवडा दूत भेज दिया । राजा तिलोकचंद मीर्जा का पानर आल्हादित हुआ और अपने पुरुषों को एकत्र करना प्रारंभ किया ! राणी ने यह तैयारी देखकर कारण पूछा। आखिर उसने भी यही सलाह दी कि 'राजा रामदेव की तरह तुम मूर्खता मत करता, संघपति बडा दातार और आत्माभिमानी है, यात्रा कराने के लिए सन्मानपूर्वक ले आना।
राजा तिलोकचंद ससैन्य मीर्जा के पास पहुंचा । मीर्जाने उसे संघपति के पास ला कर कहा कि “ये बडे व्यवहारी है, इनके पास हजरत के हाथ का फरमान है, इन्हें कोई कष्ट देगा सो हमारा गुनहगार होगा।" राजा ने कहा "कोई चिन्ता न करें, यात्रा करा के नवादा पहुंचा दूंगा । इनके एक दमडी को भी हरकत नहीं होगी। यदि नुकसान हुआ तो ग्यारहगुना मैं दूंगा"। यह सुनकर संघपतिने मीर्जा और राजा को वस्रालंकार, घोडे, सोनइया व जहांगीरी रुपये, उत्तम खाद्य पदार्थादि से संतुष्ट किया । वहां से राजा के साथ संघपति ने संघ सह प्रयाण कर पांच वाटो उल्लंघन कर सकुशल गुम्मानगर पहुंचे । अच्छे स्थान पर संघ ने पडाव डाला, और राजा तिलोकचंद ने बडी आवभगत की । संघपति ने रानो के लिए अच्छे २ वस्त्राभरण भेजे । ___ गोमा से और भी बहुत से पैदल सैनिक साथ में ले लिये। यहां से गिरिराज का रास्ता बड़ा विषम है, दोनों ओर पहाड़ और बीच में बीहड़ बन है। नाना प्रकार के फल फूल औषधि आदि के वृक्षों से परिपूर्ण है
और प्राकृतिक सौन्दर्य का निवास है। जंगली पशु पक्षी बहुतायत से विचरते हैं। नदी का मीठा जल पीते और कड़ाही करते हुए झोंपड़ियों वाले गांवों में से होकर खोह को पार किया। १२८० अन्न के पोठिये और धृत के कूड़े साथ थे। अन्नसत्र प्रवाह से चलता था। अनुक्रम से संघपतिने चेतनपुर के पास डेरा दिया। यहां से १ कोश दूरी पर अजितपुर है वहां का राजा पृथ्वीसिंह बड़ा दातार, शूरवीर और प्रतापी है। नगारों की चोट सुन पृथ्वीसिंह की राणी ने ऊपर चढ देखा तो सेना की बहुलता से व्याकुल हो गई। राजा ने संघपति की बात कही और अपने भतीजे को संघपति के पास भेजा। उसने संघपति का स्वागत कर अपने राजा के लिए कोल (निमन्त्रण) देने का कहा। संघपति ने सहर्ष बस्त्रादि सह कोल दिया। राजा पृथ्वीसिंह समारोह से संघपति से मिलने आया। संघपति ने वस्त्रालंकार द्रव्यादि से राजा को सन्मानित किया। दूसरे दिन अजितपुर आये। १ मुकाम किया। वहां से मुकुन्दपुर आये, गिरिराज को देखकर सब लोगों के हर्ष का पारावार न रहा। सोने चांदी के पुष्पों से गिरिराज को वधाया।
For Private And Personal Use Only