Book Title: Jain Satyaprakash 1935 10 SrNo 04
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - - સમિક્ષાશ્વમાવિષ્કરણ ૧૧૧ जे जड वस्तु वापरवाथी संयममां हानि लेखके जेने आधाररूपे मुकेल छे ते पहोंचती होय तेवो अचित्त वस्तुनो प्रवचनसारोद्धारग्रन्थमां कोइ पण ठेकाणे त्याग करवो तेनुं नाम अजोव संयम । चामडाना पांच जातना पुस्तक सम्बंधा कहेवाय छे. उल्लेख नथी छतां पण गमे ते रीते श्वे. अवस्थाविशेषमा उत्सर्गमार्ग करतां ताम्बरोनुं वाटी नाखवू । आवी धूनमां अपवादमार्ग बलवान् अने कल्याणकारी आवा असम्बद्ध लखाणो लखवामां पण छ । अपवादमार्गने लायक दशामां पण लेखकनी कलम विराम पामी नथी । अपवादनो त्याग करीने उत्सर्गमार्गनेज वात एवी छे के पांच जातनुं पुस्तक वळगी रहेवामां आवे तो लाभ करता अलग छे. लेखकने आवी देखीतो वातनुकशान वधारे थई पड़े छे । आटलाज नो पण ख्याल नहि रहेवाथी पांच जामाटे दिगम्वर शास्त्रकारोए पण अनेक तनुं चामडानुं पुस्तक लखीने हास्यरस अपवादो मान्या छे । अने ते पण एवा लीधो छ । एका छे के मूलमागनी साथे मोटो विरोध प्रस्तुतमां चर्मपञ्चक उपयोगी हो. धरावता होय छे। आ बाबतनो थोडो बाथो तेनो कांइक विस्तारधी विचार नमूनो तो प्रथम अमो बनावी आव्या छीए, अने फग पण प्रसङ्गापात बतावाशे। करोध । प्रथम बे जातना चर्मपञ्चक यताको आव्या छोए. जेमा प्रथम चर्मलेखक उत्सर्ग ने अपवादनी मर्यादा समजी जाय अने अमोने या लखवाना पञ्चकनो अर्थ स्पष्ट छे माटेमा विशेष प्रसंगमा न उतारे वधारे इच्छवा लखवानुं नथो । बोजा चर्भपञ्चकमां प्र थम तलिया मुकेल छ जोडावाचक उपाजेधुं छे। नह विगेरे शब्द नहि मुकतां तळिया आ दिगम्वर लेखके नथो तो कोइ शब्द मुकेल छे ते विशेषताए जणावे छे पण एवी उत्तम गुरुगमता मेळवी। अ. के इस्थलोको सामान्य रीते जे जोडा श्या नथी तो श्वेताम्बरोना संस्कृत सा- वापरे छे ते लेवाना नथी एरन्तु चाम: हित्यनो तथा प्रकारनो अभ्यास कर्यो। डाना तळीया वाघरोवाळा पाना अंगुठा परंत भाषान्तरना पुस्तकोनो मोटे भागे विगेरेमा भरावोने धारण करी शकाय आधार लोधो छे; एटलुज नहि पण ते लेबाना छे । बीला भेदा खल्लको भाषान्तरमा पण उंडा उतरोने तथा शब्द मुकेल छे । आ पण पगने रक्षण प्रकारनो विचार करवानो अवकाश मेळ- करनार खोळा जेवा चविशेषने कहे छे. वेळ होय तेम देखातुं नथी। केवल परंतु नहि के सामान्य जोडाने । त्रीजा मखमस्तीति वक्तव्यं दशहस्ता हरि-भेदमा वाधरो बतानी जे तळिया विगेरे ती" आ वाक्यना भावने आगल करीने तुटेला होय तेने सांधवाना काममां आवे दीधे राखेल छे । लेखके उछालेला गप- छ। चौथा भेदमा कोशक बतावेल छे, गोळानो एक नमुनो कोशक एटले अंगुठा विगेरेना नख साध कोसो विशेष समय चमडेकी तुटया होय अथवा वाग्युं होय त्यारे भी पुस्तक अपने पास रख लेवे । कैला रुझ लाववानो खातर भराववाना काममां हास्यकारक विधान है। महाव्रतधारी आवती झोळी । पांचमो मेद् कृत्ती साधु चमडेको ओर कोईभी वस्तु नहीं बताववामां आवेल छे, कृत्ति एटले पृथ्वी. किन्तु पुस्तक जिसमे जिनवाणी अङ्कित कायादिकना बचावनी खातर उपयोगमा झेगी अपने पास रक्खे।" लेषातुं चर्म। For Private And Personal Use Only

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