Book Title: Jain Satyaprakash 1935 10 SrNo 04
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 30
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૧૧૮ શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ ___ आजीवक मत त्रैराशिक मत व सम्मिलित हो कर एक बनें तब हो चीरअबद्धिकमतके अनुयायी आज तक काल पर्यन्त जींदी रह सकती हैं, उन भिन्न भिन्न थे, वे सब इसमें शरिक हो मतोनें भी इस इलमको अपने जीवन में गये. और शिवभूति मुनिने भी उन्होंको उतार दिया। अपनेमें मिला लिया। आजीवकमतदर्शक बौद्धप्रमाणो, बिखरी हुइ छोटी छोटी जातियां हलायुधकृत अभिधान रत्नमाला सम्यक्त्वज्ञानशीलानि तपश्चेतीह सिद्धये तेषामुपग्रहार्थाय स्मृतं चीवरधारणम् ॥ १॥ वा० उमास्वातिः । यदौत्सर्गिकमन्यद्वा लिङ्गमुक्तं जिनैः स्त्रियाः पुंवत्तदिष्यते मृत्यु-काले स्वल्प कृतोपधेः । श्रावकाचारे, आशाधरः ॥ दुविहो जिणेहिं कहिओ जिणकप्पो तहय थविरकप्पो य सो जिणकप्पो कहिओ उत्तम संहणणधारिस्स ॥ १॥ भावसंग्रह ॥ मोक्षाय धर्मसिद्धयर्थं शरारं धार्यते यथा । शरीरधारणार्थ च भैक्षग्रहणमिष्यते ॥१॥ तथैवोपग्रहार्थाय पात्रचीवरमिष्यते । जिनैरु पग्रहः साधोरिष्यते न परिग्रहः ॥ २ ॥ वा० अश्वसेनः । भावे समणो य धीरो, जुवइजण वेदिओ दिसुद्धमई । णामेण सिवकुमारो, परित्तसंसारिओ जाओ ॥ १ ॥ भावेण होइ णग्गो, बहिरलिंगेण किं च नग्गेण । कम्मपयडीयनियरं, णासइ भावेण ण-दवेण ॥ २ ॥ ॥ प्राभुते कुंदकुंदः ॥ पिच्छे ण हु सम्मत्तं करगहिए चमर मोर डंबरओ ॥ समभावे जिदिएं, रागाइदोसचत्तेग ॥ १ ॥ ढाढसीगाथा २८ ॥ लिंगं देहाश्रितं दृष्टं, देह एवात्मनो भवः ।। न मुच्यन्ते भवात्तस्मात् , ते ये लिंगकृताग्रहाः ॥१॥ समाधितंत्रे, पूज्यपादः।। स्त्रीचारित्र-स्त्रीमुक्ति के भी प्रमाण मिली हैं जिनको हम आगे लिखो। इसके उपरांत नोम्न लिखित पाठो भी दिगम्बर शास्त्रों में उपलब्ध है For Private And Personal Use Only

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