Book Title: Jain Sahityakash Ke Aalokit Nakshatra Prachin Jainacharya
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 10
________________ भद्रबाहु के जन्म-स्थान को लेकर उनसे संबंधित परवर्ती कथानकों में वैविध्य एवं विसंवाद की स्थिति है । कल्पसूत्र, नंदीसूत्र, दशाश्रुतस्कंध की नियुक्ति, तित्थोगालीपइन्ना, गच्छाचारपइन्नाआदिप्राचीन स्तर के श्वेताम्बरग्रंथों में उनके जन्म स्थान का कोई उल्लेख नहीं है - परवर्ती श्वेताम्बर ग्रंथों - गच्छाचार की दोघट्टीवृति और प्रबंधकोश में उन्हें प्रतिष्ठानपुर (वर्तमान पैठन, महाराष्ट) का निवासी बताया है। प्रबन्धचिन्तामणि में यद्यपि भद्रबाहु के निवास स्थान का तो कोई उल्लेख नहीं है, किन्तु उनके तथाकथित भाई वराहमिहिर को पाटलिपुत्र का निवासी कहा गया है।' ज्ञातव्य है कि प्रतिष्ठानपुर जहाँ दक्षिण महाराष्ट में है, वहाँ पाटलीपुत्र (पटना) उत्तर बिहार में है, इस प्रकार जन्म स्थान को लेकर श्वेताम्बर स्त्रोतों में विप्रतिपत्ति है। दिगंबर परंपरा के ग्रंथ भावसंग्रह में उन्हें उज्जैन के साथ जोड़ा गया है। पुन्नाटसंघीय यापनीय हरिषेण ने अपने ग्रंथ बृहत्कथाकोष (ई. 932) में भद्रबाहु के जीवनवृत्त का उल्लेख किया है- उनके अनुसार, प्राचीन काल में पुण्डवर्धन राज्य में कोटिपुर नगर (देवकोट्ट) में राजपुरोहित सोमशर्मा की धर्मपत्नी सोमश्री की कुक्षि से भद्रबाहु का जन्म हुआ, किन्तु उन्होंने भी इस कोटिपुर को उर्जयन्त पर्वत (गिरनार) के मार्ग में कहीं गुजरात में स्थित मान लिया है- जो भ्रांति है। वस्तुतः, यह कोटिपुर न होकर कोटिवर्ष था, जो बंगाल में पुण्डवर्धन के समीप स्थित रहा होगा। कोटिवर्ष के भद्रबाहु के जन्मस्थान होने की संभावना हमें सत्य के निकट प्रतीत होती है, क्योंकि आगमों में भद्रबाहु के शिष्य गोदास से प्रारंभ हुए गोदासगण की दो शाखाओं का नाम कोटिवर्षीया और पौण्डावर्द्धनिका के रूप में उल्लिखित है। रत्ननंदी ने अपने भद्रबाहुकथानक में जन्म स्थान और माता-पिता के नाम आदि के संबंध में प्रायः हरिषेण का ही अनुसरण किया है।रइधूने अपने भद्रबाहुकथानक में माता-पिता और राजा आदिके नाम तो वही रखे, किन्तु कोटिपुरको कउत्तुकपुर (कौतुकपुर) कर दिया है।' जन्म-स्थल एवं निवास क्षेत्र के इन समस्त उल्लेखों की समीक्षा करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि वस्तुतः पाइन्न गोत्रीय श्रुतकेवली भद्रबाहु का जन्म-स्थल पौण्डवर्धन देश का कोटिवर्ष नगर ही रहा है, किन्तु हरिषेण ने उसे जो गुजरात में स्थित माना, वह भ्रांतिपूर्ण है । वस्तुतः, यह नगर बंगदेश के उत्तर-पूर्व में और चम्पा (आधुनिक भागलपुर) से दक्षिण-पूर्व में लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित था। श्वेताम्बर आचार्यों ने प्रबंधकोश आदि में जो उसे प्रतिष्ठानपुर से समीकृत किया

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