Book Title: Jain Sadhna ki Vishishtata Author(s): Hastimal Acharya Publisher: Z_Jinvani_Acharya_Hastimalji_Vyaktitva_evam_Krutitva_Visheshank_003843.pdf View full book textPage 2
________________ · २७४ • कर्म के पाश में बंधे हुए आत्मा को मुक्त करना प्रायः सभी प्रास्तिक दर्शनों का लक्ष्य है, साध्य है । उसका साधन धर्म ही हो सकता है, जैसा कि 'सूक्तिमुक्तावली' में कहा है व्यक्तित्व एवं कृतित्व "त्रिबर्ग संसाधनमन्तरेण, पशोरिवायु विफलं नरस्य । तत्राऽपि धर्मं प्रवरं वदन्ति, नतं विनोयद् भवतोर्थकामौ ।” पशु की तरह निष्फल है । इनमें भी धर्म मुख्य है, क्योंकि उसके बिना अर्थ एवं काम सुख रूप नहीं होते । धर्म साधना से मुक्ति को प्राप्त करने का उपदेश सब दर्शनों ने एक-सा दिया है । कुछ ने तो धर्म का लक्षण ही अभ्युदय एवं निश्रेयस, मोक्ष की सिद्धि माना है । कहा भी है- 'यतोऽभ्युदय निश्रेयस सिद्धि रसौ धर्म' परन्तु उनकी साधना का मार्ग भिन्न है । कोई 'भक्ति रे कैव मुक्तिदा' कहकर भक्ति को ही मुक्ति का साधन कहते हैं । दूसरे 'शब्दे ब्रह्मणि निष्णातः संसिद्धि लभते नर' शब्द ब्रह्म में निष्णात पुरुष की सिद्धि बतलाते हैं, जैसा कि सांख्य प्राचार्य ने भी कहा है Jain Educationa International "पंच विंशति तत्वज्ञो, यत्र तत्राश्रमे रतः । मुंडी शिखी वापि, मुच्यते नाम संशयः ।। " अर्थात् पच्चीस तत्त्व की जानकारी रखने वाला साधक किसी भी प्राश्रम और किसी भी अवस्था में मुक्त हो सकता है। मीमांसकों ने कर्मकाण्ड को ही मुख्य माना है । इस प्रकार किसी ने ज्ञान को, किसी ने एकान्त कर्मकाण्ड - क्रिया को, तो किसी ने केवल भक्ति को ही सिद्धि का कारण माना है, परन्तु रातों का दृष्टिकोण इस विषय में भिन्न रहा है। उनका मन्तव्य है कि एकान्त ज्ञान या क्रिया से सिद्धि नहीं होती, पूर्ण सिद्धि के लिये ज्ञान, श्रद्धा और चरण - क्रिया का संयुक्त आराधन आवश्यक है । केवल अकेला ज्ञान गति हीन है, तो केवल अकेली क्रिया अन्धी है, अतः कार्य - साधक नहीं हो सकते । जैसा कि पूर्वाचार्यों ने कहा है- 'हयं नाणं क्रिया हीणं हया अन्नारणम्रो क्रिया ।' वास्तव क्रियाहीन ज्ञान और ज्ञानशून्य क्रिया दोनों सिद्धि में असमर्थ होने से व्यर्थ हैं । ज्ञान से चक्षु की तरह मार्ग कुमार्ग का बोध होता है, गति नहीं मिलती । बिना गति के आँखों से रास्ता देख लेने भर से इष्ट स्थान की प्राप्ति नहीं होती । मोदक का थाल आँखों के सामने है, फिर भी बिना खाये भूख नहीं मिटती । वैसे ही ज्ञान से तत्वातत्त्व और मार्ग - कुमार्ग का बोध होने पर भी तदनुकूल आचरण नहीं किया तो सिद्धि नहीं मिलती। ऐसे ही क्रिया है, कोई दौड़ता है, पर मार्ग का ज्ञान नहीं तो वह भी भटक जायगा । ज्ञान शून्य क्रिया भी घाणी के बैल की तरह भव-चक्र से मुक्त नहीं कर पाती । अतः शास्त्रकारों ने कहा है- 'ज्ञान क्रियाभ्यां मोक्षः । ज्ञान और क्रिया के संयुक्त साधन से ही For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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