Book Title: Jain Sadhna ki Vishishtata Author(s): Hastimal Acharya Publisher: Z_Jinvani_Acharya_Hastimalji_Vyaktitva_evam_Krutitva_Visheshank_003843.pdf View full book textPage 1
________________ आचार्य श्री के प्रेरणास्पद प्रवचन [१] जैन साधना की विशिष्टता साधना का महत्त्व और प्रकार : साधना मानव जीवन का महत्त्वपूर्ण अंग है । संसार में विभिन्न प्रकार के प्राणी जीवन-यापन करते हैं, पर साधना-शून्य होने से उनके जीवन का कोई महत्त्व नहीं आंका जाता । मानव साधना-शील होने से ही सब में विशिष्ट प्राणी माना जाता है। किसी भी कार्य के लिये विधिपूर्वक पद्धति से किया गया कार्य ही सिद्धि-दायक होता है । भले वह अर्थ, काम, धर्म और मोक्ष में से कोई हो। अर्थ व भोग की प्राप्ति के लिये भी साधना करनी पड़ती है। कठिन से कठिन दिखने वाले कार्य और भयंकर स्वभाव के प्राणी भी साधना से सिद्ध कर लिये जाते हैं । साधना में कोई भी कार्य ऐसा नहीं, जो साधना से सिद्ध न हो । साधना के बल से मानव प्रकृति को भी अनुकूल बना कर अपने अधीन कर लेता है और दुर्दान्त देव-दानव को भी त्याग, तप एवं प्रेम के दृढ़ साधन से मनोनुकूल बना पाता है । वन में निर्भय गर्जन करने वाला केशरी सर्कस में मास्टर के संकेत पर क्यों खेलता है ? मानव की यह कौन-सी शक्ति है जिससे सिंह, सर्प जैसे भयावने प्राणी भी उससे डरते हैं । यह साधना का ही बल है । संक्षेप में साधना को दो भागों में बांट सकते हैं-लोक साधना और लोकोत्तर साधना। देशसाधना, मंत्र-साधना, तन्त्र-साधना बिद्या-साधना आदि काम निमित्तक की जाने वाली सभी साधनाएँ लौकिक और धर्म तथा मोक्ष के लिये की जाने वाली साधना लोकोत्तर या आध्यात्मिक कही जाती है। हमें यहाँ उस अध्यात्मसाधना पर ही विचार करना है, क्योंकि जैन-साधना अध्यात्म साधना का ही प्रमुख अंग है। जैन साधना-आस्तिक दर्शकों ने दृश्यमान् तन-धन आदि जड़ जगत् से चेतनासम्पन्न प्रात्मा को भिन्न और स्वतंत्र माना है। अनन्तानन्त शक्ति सम्पन्न होकर भी आत्मा कर्म संयोग से, स्वरूप से च्युत हो चुका है। उसकी अनन्त शक्ति पराधीन हो चली है । वह अपने मूल धर्म को भूल कर दुःखी, विकल और चिन्तामग्न दृष्टिगोचर होता है । जैन दर्शन की मान्यता है कि कर्म का आवरण दूर हो जाय तो जीव और शिव में, आत्मा एवं परमात्मा में कोई भेद नहीं रहता। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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