Book Title: Jain Ramayanam
Author(s): Hemchandracharya, Jagganath Shukla
Publisher: Dhanpatsinh Bahaddur

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ रामायणम् । तिष्ठतेस्म कुमारी सा श्रीकण्ठायोन्मुखाम्बजा । खयम्बरखजमिवः क्षिपन्तीस्निग्धया दृशा ॥६॥ विज्ञाय तदभिप्रायं श्रीकण्ठस्तां स्मरातुरः । आदाय व्योममार्गेण गन्तु प्रबहते द्रुतम् ॥११॥ पद्मां हरति कापीति पूत् कुर्वन्ति स्म चेढिका । पुष्पोत्तरीघि सन्न ह्यत्वधावत सबलो बली ॥६॥ श्रीकण्ठोपि द्रुतं कीर्ति धवलं शरणं ययौ । पद्माहरण वृत्तान्तं कथयामास चाखिलम् ॥६॥ पुष्पोत्तरोपि तमाशु प्राप सैन्यैर्निरन्तरैः । आशाः प्रच्छादयन्ननियुगान्त इव सागरः ॥१४॥ दूतेन कीर्तिधवल : पुष्योत्तरमभाषतः। अविश्य प्रयासेायं मुधावः सांपरायिकः ॥१५॥ कन्याह्मवश्यं दातव्या कस्मैचन तया यदि। वयं तोऽसौ श्रीकण्ठस्तदासौ नापराध्यति ॥६॥ नतद्दो यज प्रते योद्ध बवाखदुहितुर्मनः । कातुं वधूवरोहाह कृत्य मेवतु सांप्रतम् ॥१७॥ दूतीमुखेन पद्मापि तदैवेति व्यजिज्ञपत् । टतो मया स्वयमयं हृताहं नामुना पुनः ॥६on इति पुष्पोत्तरं श्रुत्वा शान्तकापो भवरक्षणात् । प्रायो विचार चञ्चनां कोपः सुप्रशमः खलु ॥६६॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 388