Book Title: Jain Meghdutam Author(s): Merutungacharya, Shilratnasuri, Chaturvijay Publisher: Atmanand Jain Sabha View full book textPage 9
________________ प्रस्तावना. करी छे, पण आ काव्यमां तो संपूर्ण मेघदतने स्थान मल्युं छे; एटली आ काव्यनी विशेषता छे. आ काव्यनी केटलाक वाचको प्रशंसा करे छे त्यारे केटलाक वाचको तेनी सरळता माटे मान दर्शावे छे. स्व. किलाभाइ पोताना मेघदूतना अनुवादनी प्रस्तावनामां लखे छे के-"पार्थाभ्युदयनी रचना कंइक क्लिष्ट अने बहुधा जैन लेखकोना जेवा ज गुणवाली छ......... कालिदासना मेघदूत करतां पण पोतानुं काव्य कंइक वधारे गुणवाळु छे, ए, मिथ्याभिमान जिनसेनने हतुं एम जणाय छे. ए. काव्यनी वाणी कर्कश अने रस विनानी छे.........." त्यारे प्रो. के. वी. पाठक "कुमारिलभट्ट अने भर्तृहरी" नामना पोताना निबंधमां जिनसेनस्वामीना विषयमां लखे छे के-"जिनसेन अमोघवर्ष (पहेला) ना राज्यकाळमां थया हता एम पोते पोताना पाचाभ्युदयमा लखे छे. पार्थाभ्युदय संस्कृत साहित्यमां एक कौतुकजनक उत्कृष्ट रचना छे. आ ते समयना साहित्यस्वादनु उत्पादक अने दर्पणरूप अनुपम काव्य छे. जो के सर्वसाधारणनी सम्मतिथी भारतीय कविओए कालिदासने पहेलं स्थान आप्युं छे, तो पण जिनसेन मेघदतना कर्तानी अपेक्षा अधिकतर योग्य मानी लेवाने अधिकारी छे" प्रथम अभिप्राय जातीय अभिमाननो पडघो छ त्यारे बीजो अभिप्राय व्याजबी तुलनार्नु परिणाम छे. तेनी योग्यता केवी छे ते नीचेना उदाहरणरूपे आपेला श्लोको उपरथी पाठके बांधी लेवी जोइए चित्रं तन्मे यदुपयमनानन्तरं विप्रयुक्ता ___ त्वत्तः साध्वी सुरतरसिका सा तदा जीवति स्म । मन्ये रक्षयसुनिरसनाद्धातुमापद्गताना “माशाबन्धः कुसुमसदृशं प्रायशो ह्यङ्गनानाम्" ॥ ३५॥ तीव्रावस्थे तपति मदने पुष्पबाणैर्मदर्श तल्पेऽनल्पं दहति च मुहुः पुष्पमेदैः प्रकृते ।Page Navigation
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