Book Title: Jain Meghdutam
Author(s): Merutungacharya, Shilratnasuri, Chaturvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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प्रस्तावना.
श्रीमन्नेमेश्चरितविशदं साङ्गणस्याङ्गजन्मा चक्रे काव्यं बुधजनमनःप्रीतये विक्रमाख्यः ॥ १२६ ॥
नेमिदूतं समाप्तम् ॥ उपरना काव्यकारनी पेठे आ काव्यना कर्ताए पण मेघदतनुं
अंतिम चरण लेइ, वाकीनां त्रण चरणो पोते रशीलदूत चेलां छ. आ संदेशकाव्यनी वस्तुकथाथी जैन
समाजमां भाग्ये ज कोइ अपरिचित हशे. मनुष्यो जे वृत्तिना दास बनीने पोतानुं जीवन निरर्थक गुमावी वेसे छ, अनंत भूतकाळथी लइ अनंत भविष्यकाळना जगतने दृष्टिसमक्ष करी अवलोकन करवामां आवे तो जणाशे के ए पशुवृत्तिनो पराजय करनारा मनुष्यो बहु अल्प संख्यामां मळी आवशे. ते वृत्ति-विषयवृत्ति-उपर जय मेळवनार प्रख्यात स्थूलभद्रनुं विशद चरित्र आलेखवामां आव्युं छ.
स्थूलभद्र जगतना व्यवहारथी विमुख थइ, शिशुवयथी कोशानी साथे विषयविलासमां केटलंय जीवन व्यतीत थया बाद, अचानक राज्यप्रपंचोमां पोताना पितानुं मृत्यु थयु एम सांभळे छ, जे कुटुंब अने जनतामा अळग्वामणो थई पडेल अने जेना उच्च जीवन माटे कोइने आशा न हती; ते स्थूलभद्रना हृदयमा एकाएक जगतनी प्रापंचिक जंजाळोनां प्रतिबिंबो पडे छ, अने तेथी जीवननी दिशाने बदली नाखवान आंदोलन उत्पन्न थाय छे. जे वीर जेटला वेगथी विषयरसमां रच्यो पच्यो रहेतो हतो, ते वीर तेटला ज वेगथी तेने तिलांजली आपी आत्माना कल्याणार्थे भद्रबाहुस्वामी पासे जाय छे. त्यां पोताना जीवन- व्हेण बदली नाखी, पूर्वपरिचित कोशाने विशुद्ध मार्गे चडाववा माटे पुनः त्यां पधारे छे. कोशा स्थूलभद्रने आवो शुष्कमार्ग ग्रहण करवामाटे ठपको आपे छे, अने आवा कठोर व्रतनो त्याग करी पुनः पूर्व दशामां आववा माटे विनति करे छे. जवाबमां स्थूलभद्र जणावे छे- भोली आपणा आत्माना अविकासनी ए आपणी दशा हती. जो शाश्वत सुखनी वांछना होय तो आवां. अल्पसमयी

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