Book Title: Jain Kumarsambhava Mahakavya
Author(s): Jayshekharsuri
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 12
________________ खा) wrivindinisieviennonvivivivisiesiesverversoreries २२. अचलगच्छनां क्रियोद्धारक (धर्ममूर्तिसूरि) २३. अचलगच्छनी प्रतिभा (कल्याणसागरसूरि) २४. अचलगच्छनां समुद्धारक (गौतमसागरसूरि) २५. जीवन- अमृत (तत्त्वज्ञाननां लेखो) २६. लिंग-निर्णय ग्रंथ (मूळ व्याकरणनां अंग विषयक) २७. लिंग-निर्णय संस्कृत शब्दकोश परिशिष्टादि सह (व्याकरणनो अंग) २८. षड् दर्शन निर्णय सानुवाद ( मेरुतुंगसूरिकृत) २९. समरो महामंत्र नवकार ३०. भोज-व्याकरणम्-अनुवाद विवरण सहित ३१. विद्वचिंतामणि-पद्यबद्ध ३२. खिला फूल फैल गई सौरभ ३३. बारसासूत्र सचित्रं-मूळ ३४. मारे जावू पेले पार ३५. पर्युषण स्वाध्याय ३६. फटाकडा फोडी भरोनां पापझोली ३७. रेडी वन टु थ्री ३८. जैन कथा संदोह-भाग १ ३९. अहं न करियो कोय ४०. होठे गुंजे गीत-हैये प्रभुनी प्रीत ४१. श्री जयशेखरसूरि भाग-१ (पी.एच.डी. महानिबंध) ४२. श्री जयशेखरसूरि भाग-२ (पी.एच.डी. महानिबंध) ४३. चालो जिनालयनी वर्षगांठ उजवीओ ४४. अचलगच्छनी प्रतिभा (संक्षिप्त पट्टावलि) ४५. पुरुषार्थनी प्रेरणामूर्ति ४६. जंबुस्वामि चरित्र-प्रताकार (जयशेखरसूरिकृत पद्य) vinununununurinn l ivsviniriningarvinnvierno Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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