Book Title: Jain Kumar Sambhavakhyam
Author(s): Jayshekharsuri
Publisher: Acharyarakshit Pustakoddhar Sanstha

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ सुज्ञ महाशय! आ "जैनकुमार संभव" नामर्नु अति अद्भुत तथा काव्य चमत्कृतिवालं अने साहित्यरसथी भरेल रमणिक काव्य छे. आ काव्यना का अंचलग दिनमणि कवि चक्रपक्रधर पूज्य आचार्य श्रीमज्जयशेखरसूरि छे. प्रस्तुत फविश्वर अंचलगन्छनी ५६ में पाटे थयेला पूज्य भटारक श्री महेंद्र प्रभसरिजीना शिष्य इता. तेओश्रीनी साहित्यसेवा अनुपम छे. तेओए रवेला उपदेशचिंतामणि, प्रबोधचिंतामणि, धमिल चरित्र आदि ग्रंथो तेमनी अद्भुत कवित्वशक्ति अने महा विद्वता प्रगट करे छे, आचार्य महाराज विक्रम संवत् १४३६ मां विद्यमान हता. आ कविश्वरने सरस्वती देवीए वरदान आयु हेतुं, एम तेमना “ वाणीदत्तवरश्चिरं " इत्यादि काव्यश्री खुल्लु जणाइ आवे छे. जेम प्रखर महाकवि श्री कालीदासे कुमारसंभव नामर्नु काव्य रचेल छे तेम आ कविश्वरे जैनकुमार संभव काव्य रची साहित्यनी अपूर्व सेवा बजावी छे. । प्रथम आ ग्रंथ मूळ श्लोक अने तेनो गुजराती अनुवाद जामनगर निवासी पंडित हीरालाल हंसराज पासे करावी संवत् १९५७ मां श्रावक भीमसी माणेके प्रसिद्ध करेल हतो. त्यारपछी ग्रंथावली विगेरेमा तपास करता मा ग्रंथ उपर आशरे ८०० श्लोकनी टीका उपरोक्त कविश्वरेज करेल छे परंतु प्रति कोइपण जग्याए उपलब्ध थती होती त्यारबाद एक प्रति सुरत आनंदपुर पुस्तकालय मारफत मळतां तेनी प्रेसकोपी पं० मणिशंकर छानलाल पासे करावी एटलंज नहिं पण सिद्ध हेमना व्याकरणना शब्दो केटमां आपी वधु स्पष्ट करेल छे.

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 397