Book Title: Jain Kumar Sambhavakhyam
Author(s): Jayshekharsuri
Publisher: Acharyarakshit Pustakoddhar Sanstha

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ કો पृष्ठ पक्ति अशुद्ध शुद्ध पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध शुद्ध १४२ २३ यासा यासां १५० १५ गर्जितो गर्जितोजितो १४३ २२ किं किं कि ,, २२ यड् यह " , रूढी १५. ४ बहिं बहि १४४ ९ भरक मरक ६ ५-२-४ ५-२-३ , १० , " ९ सन्यस्व सन्यश्व , १५ अभूत्यु अभूत्पु , २० मान मानः ,, ૧૨ તપો તો , २१ मुखित मुषितं , ૨૨ શ્રવણ શ્રવણ , २२ भाप d २५ हस्तरत हस्तस्त , २४ तिस्थे तिसार ૧૪૩ તદિષ્ણુતા સહિષ્ણુતા १५२ १ मुखित मुषित , ११ घुसञ्चये घुसमुच्चये लक्षणया ,, १३ तेषा तेषां , २५ निघेहि निधेहि १४६ ११ पुजः पुनः १५४ १६ युगं , २१ पुरी पुरो- १५५ १६ विनचि व्यनज्मि १४७ ४ मम्मुहत् अमूमुहत् ,, १७ तय। तया , ६ प्रसिद्धः प्रसिद्ध , १९ २५ । ५। , १६ गमद् गमृद् ,, २. युतं च्युत १४८ ६ पटपना षट्पदा १५६ ४ पूर्वापरा इत्यारस्य। , ७ कल्पास्य कल्याणस्य पुरभादेश इत्यन्तं , १८ पश्यम् वश्यधर्म्यम् । , १२ च्छ्वासत् च्वसत् , १९ जवणे अवणे , २३ इन्छया इच्छया ३ ४-२-८ ४-२-४८ १५७ ६ - विहिताम्रहः विहितामा " ६ तनूमन्तः तनूमन्त.. १५८ ६ च तया , १८ देब्णिति देब्णिति , ९ भतुर्वि भक्त वि , , आवि भादि । , २० संघौ सन्धौ ६ संहवा संहतो , २२ पात्रं पानं , १२ क्षुब्धः क्षुब्ध ૧૫૨ ર ય ત્ય " , फाण फाट ,, १० जैनी जैनी __40 વૃદ્ધ टितम् रिताम् , १३ : निट् । , १६ ७-१-१११ ७-१-११ , १६ लक्षया . . . . . . . . १४९

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 397