Book Title: Jain Kavyaprakash Part 01 Author(s): Shravak Bhimsinh Manek Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 6
________________ data - परारसांने जारगोने सीधेनाप्रथमलागनीतपासपी उरवासा रघगोस्वप्पजत भत्योछेतेने सीधे,तथा शिक्षा प्रेसणेपर मा पुस्ता छाप्यु, तेथीजीलवजत यूठ सुधारवानी अगवडने तीघे,रुस्चना हीर्घ,गनी,मात्रा,अनुस्वार वगेरेनी यूओ तो प्रत्यक्षपएील थयेसीधी भांजाचशे, ते सर्वसुन्नी सुधारीवांयशे- वसीवरेभा पेय मध्ये सीढीजोतेहेरो जालीघानतथाअढीहीपते हो। एहरिद्वीपमें) मेवा पाहलूलथी खजागयेताछे,त्याफिजीलपण जेवाप्रहारनी यूटोणपरतजेला मरणोथी तथा शिशीषथीतथा मना हारी भोछीसभएनी प्रजतताथीथयेखीन्नेवाभांबावशे.तेम ध्य छापवारूप मपरापने शर्छ महाराथीथयस हीडामाभावे,ते मना हारी पर पापूर्वउ भने भंभतिन्नएीने मे अपराध क्षमाश्यो,या नेवा प्राश्ना अशुध्यताना शेषयी निवृत्तथवानेहुंभहारा मन, वयन,मने आयायें, घिउरए शुध्ये जीजे पुष्कृतने समस्तवांचनार साइजोनी समक्ष, पुनः पुन: मिथ्याई . डिंबहुनारिखेजनेन. RMALAR - - RANT TAMI Jain Educationa International ताभसीतापस शानस्थयुंतेनुचित्र. www.jainelibrary.org.Page Navigation
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