Book Title: Jain Katharnava
Author(s): Kailassagar Ganivar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie अशुद्धम् शुद्धम् पृ० पं० अशुद्धम् शुद्धस् रुपनै रुत्पन्ने १२१ २ यद्पं यत्प भण्डलि मण्डलि १२१ ९ भूपण भूषण आयुषः आयुषः १२ २ १ व्यघि व्याधि अच्युत् अच्युत १२ २ २ केया केशा स्वमिनो स्वामिनो १३ २ २ मुद्रितउ मुद्रित धात् धात्री १३२ ५ मधीश्वरः मधीश्वरः प्रोवाच प्रोवाच १३२११ दशम दशा पुरुषोत्तमान् पुरुषोत्तमाः १४ २ ६ दशम दशा दयद दयाद १४ २ ७ सप्तति सप्तभि अग्रो अथो १४ २ ९ राज्वे राज्ये द्दधानः द्दधानः१५२ ७ खयम् स्वयम् मान्मजम् मात्मजम् १६१ ४ दशम दशा इत्युपर्गार्थ इत्युपसर्गार्थ १६ २ ६ दशम दशा चतुर्विघं चतुर्विधं १८१११ जितो जितो DETECTUEET LEDE EEEEEEEEEEEEE पृ० पं० अशुद्धम् शुद्धम् पृ० १० १९१ २ व्याधि व्याधि २४ २ २ १९२ ५ दशम दशा २४२ ७ २० २ १२ प्राघुर्णकाय प्राघूर्णकाय २५११२ २१ १ ४ तश्रुत्वा तच्छुत्वा २५ २ १३ २११ ६ वृद्धि वृद्धि २६ ११२ २१ २ १ मोदके मोदकै २६ ११५ २२१ ९ मुनि २६ २ ११ २२ २ ८ तालेपु तालेषु २६ २१४ २२ २१३ मरीन भृरीन् २७१३ २३ १ ३ शिव शिवं २७ ११० २३ १ ३ जन्मभू जन्मभूः २३ १ ६ प्रनष्टवान् प्रणष्टवान् २७ २१४ २३ २ ५ त्रमिदं वोऽसकौ २८१ २४१११ मेवं मेव २८ २९ 8-888888888888882 ૨૭ For Private and Personal Use Only

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